बुधवार, 7 अगस्त 2013

मुरली सार:07 .08.2013

07 August 2013 Murli & Additional Resources.

433
Murli Pdfs

Murli Video

  • Audio Murli Hindi
    00:00
    00:00

    Hindi Murli
    मुरली सार:- “मीठे बच्चे – अमृतवेले उठ मेडीटेशन में बैठो, विचार करो – मैं आत्मा हूँ, हमारा बाबा बागवान है, वही खिवैया है, मैं उसकी सन्तान हूँ, मालिक बन ज्ञान रत्नों का सिमरण करो”
    प्रश्न:- किस एक बात का महत्व दुनिया में भी है तो बाप के पास भी है?
    उत्तर:- दान का। तुम बच्चों को रहमदिल बन सबके ऊपर तरस खाना है। सबको अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान देना है। दानियों की बहुत महिमा होती है। अखबार में भी उनका नाम निकलता है। तो तुम्हें भी सबको दान करना है अर्थात् मेडीटेशन सिखलाना है।
    गीत:- मुझको सहारा देने वाले……..
    धारणा के लिये मुख्य सार:-
    1) अमृतवेले उठ याद में बैठ ज्ञान का रमण करना है। ज्ञान धन को भी याद करना है तो ज्ञान दाता को भी याद करना है।
    2) ईश्वरीय नशे में रहकर सेवा करनी है। सबको मेडीटेशन करने की सहज विधि समझानी है। एकमत होकर रहना है।
    वरदान:- बाप के डायरेक्शन प्रमाण सेवा समझ हर कार्य करने वाले सदा अथक और बन्धनमुक्त भव
    प्रवृत्ति को सेवा समझकर सम्भालो, बंधन समझकर नहीं। बाप ने डायरेक्शन दिया है – योग से हिसाब-किताब चुक्तू करो। यह तो मालूम है कि वह बंधन है लेकिन घड़ी-घड़ी कहने वा सोचने से और भी कड़ा बंधन हो जाता है और अन्त घड़ी में अगर बंधन ही याद रहा तो गर्भजेल में जाना पड़ेगा इसलिए कभी भी अपने से तंग नहीं हो। फंसो भी नहीं और मजबूर भी न हो, खेल-खेल में हर कार्य करते चलो तो अथक भी रहेंगे और बंधन-मुक्त भी बनते जायेंगे।
    स्लोगन:- भ्रकुटी की कुटिया में बैठकर तपस्वीमूर्त होकर रहो – यही अन्तर्मुखता है।

3 टिप्‍पणियां:

Anupama Tripathi ने कहा…

सारगर्भित स्लोगन ....आभार ,

Anita ने कहा…

फंसो भी नहीं और मजबूर भी न हो, खेल-खेल में हर कार्य करते चलो तो अथक भी रहेंगे और बंधन-मुक्त भी बनते जायेंगे।

बहुत काम की बातें...

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बहुत ही सुंदर.

रामराम.