गुरुवार, 29 अगस्त 2013

शुद्ध श्रृंगारिक भाव लिए है यह श्लोक कालिदास का



संस्कृत न पढ़ पाने की पीड़ा से ऐसे ही दो चार होना होता है किसी बहुश्रुत श्लोक का अर्थ जानने के लिए भी दर दर 

भटकना पड़ता है -कालिदास के इस श्लोक का पूरा अर्थ जानने में कृपया संस्कृत के विद्वान् यदि कोई मेरी मित्र 
सूची में हो तो कृपया मेरी मदद करें !

तन्वी श्यामा शिखरि दशना पक्व बिम्बाधरोष्ठी

मध्ये क्षामा चकित हरिणी प्रेक्षणा निम्ननाभि।

श्रोणीभारादलसगमना स्तोकनम्रा स्तनाभ्यां

या तत्रा स्याद्युवतिविषये सृष्टिराद्येव धातुः।

तमाम कोशिशों के बाद तीन लाईनों का यह अर्थ बोध हो पाया है और इसमें भी कितनी शंकाएं हैं . संस्कृत की 
विदुषियाँ पला झाड रही हैं कह रही हैं किसी संस्कृत के पुरुष विद्वान् से मदद ली जाय-ऐसा किस तरह उचित है 
भला आखिर प्रोफेसनल दायित्व भी होता है कोई ? काश मैं खुद संस्कृत पढ़ा होता ! —  Meghadūta

इस श्लोक में शुद्ध श्रृंगारिक वर्रण है। कहीं कोई बिम्ब नहीं है। बिम्बात्मक वरर्ण नहीं है यहाँ । बादल यक्ष से कहता है ,वह सृष्टि की पहली आद्या सुंदरी ऐसी होगी _

जिसका अधरोष्ठ बिम्बफल सरीखा लाल होगा जिसका कटि प्रदेश क्षीण होगा ,तथा जो बड़ी बड़ी आँखों वाली हरिणी सी  चकित  होकर इधर उधर देखती होगी जिसका कद भी आकार ,कदकाठी के अनुरूप  लंबा होगा। नाभि अन्दर की तरफ बहुत गहरी  होगी। जिसके स्तन भार की वजह से थोड़ा सा नीचे की और झुके होंगें।जो आँखें झुकाकर अलस भाव से आहिस्ता आहिस्ता चलती होगी।  वह नितंभ भारणी  (भारी नितम्बों वाली )चलते समय ऐसे लगेगी जैसे उसके नितम्ब भी उसके साथ साथ चल रहे हैं मचल मचल ,ठुमक ठुमक । जो वहां पर युवतियों के केलि कलापों में प्रवीण संभवतया ऐसी पहली युवती होगी जो तुम्हें सृष्टि की आदि(आद्य ) सुंदरी के रूप में दर्शित होगी।  

सन्दर्भ -सामिग्री :मेहता वागीश से दूरभाष पर संवाद 

प्रस्तुति :वीरुभाई  

शुद्ध श्रृंगारिक भाव लिए है यह श्लोक कालिदास का 

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