मंगलवार, 9 फ़रवरी 2016

सरकारें जानरिक दवाएं मुहैया करवाएं ,इन्सुलिन को भी मेक इन इंडिआ के दायरे में लाए तब इस सुरसा के मुंह की तरह फैलते मधुमेह रोग पर लगाम लगे। आज की स्थिति खासी सोचनाक है। पढ़िए आंकड़ों सहित पूरी रिपोर्ट जो नीचे दी जा रही है।

ताज़ा सूचना के अनुसार भारत में आज तकरीबन छ :करोड़ लोग जीवनशैली रोग मधुमेह को पाले हुए हैं। इनमें जन्म के बाद से  ही होने वाली डायबिटीज़ और खराब जीवन शैली से जन्म  के बाद पैदा होने वाली सेकेण्डरी डायबिटीज़ दोनों ही शामिल हैं। डेढ़ लाख करोड़ रुपया खर्च होता है सालाना इनकी दवादारु और वर्कप्लेस पर होने वाले कुल नुक्सान को मिलाकर। जानरिक सस्ती दवाओं की कौन कहे नै से नै  दवाएं . मधुमेह के माहिर दवा निगमों के इशारे पे  तज़वीज़ कर रहे हैं जो खासी महंगी हैं और आम आदमी की पहुँच के लगातार बाहर होती जा रही है भले परम्परागत  दवाओं की कीमत में उतना उज़ाफा न भी हुआ हो ,पशुओ से प्राप्त इन्सुलिन का स्थान अब लगातर नै से नै फस्टलाइन इन्सुलिन लेती जा रही है जिसका इस्तेमाल प्राथमिक और द्वितीयक दोनों ही किस्म के मधुमेह  द्वारा रोगियों के द्वारा किया जा रहा है। 

तीन बड़े दवा निगम इस इन्सुलिन बाज़ार को कब्जाए हुए है। जबकि डायबिटीज़ भले एशेंशिअल मेडिसन की केटेगरी में आती है लेकिन  इसकी सहज सुलभ अफोर्डेबल दामों पर उपलब्धता सरकारों की प्राथमिकता में नहीं है। 


हमारा ऐसा मानना है मधुमेह कल भी सब बीमारियों की अम्मा थी आज भी है और आइन्दा भी रहेगी। पूरे परिवार का रोग बन जाता है मधेमह क्योंकि इसका पेचिलापन रोग के पुराना पड़  जाने पर पूरे परिवार को ही भुगतना पड़ता है। 

खतरनाक लाइलाज मेटाबोलिक डिसॉर्डर है डायबिटीज़ जिसका ताउम्र प्रबंधन करने के आलावा और कोई चारा नहीं है। नै दवाएं ,दवाओं के मिश्र (कम्बोज )लगातार महंगे होते जा रहे हैं। 

सरकारें  जानरिक दवाएं मुहैया करवाएं ,इन्सुलिन को भी मेक इन इंडिआ के दायरे में लाए तब इस सुरसा के मुंह की तरह फैलते मधुमेह रोग पर लगाम लगे। आज की स्थिति खासी सोचनाक है। पढ़िए आंकड़ों सहित पूरी रिपोर्ट जो नीचे दी जा रही है। 

 Yearly spend on diabetes is Rs 1.5 lakh crore, rising by 30% per annumNEW DELHI: The annual spend on account of diabetes treatment in India is pegged at Rs 1.5 lakh crore, 4.7 times the Centre's allocation of Rs 32,000 crore on health and three-fourth of the budgeted service tax collections this fiscal, with experts saying that the cost of treatment of the disease is rising by 20-30% every year.


A study by Lancet has expressed concern over the rising cost of insulin, making it virtually unaffordable for a large chunk of patients globally with India, known as the diabetes capital of the world, accounting for 60 million of them.

The economic burden of diabetes is high in the country as most patients pay outof-pocket, and due to lack of medical reimbursement. While diabetes rate has increased by around 45% globally, it has jumped 123% in India between 1990 and 2013, according to the Institute for Health Metrics and Evaluation at the University of Washington.

The cost of diabetes care, including direct as well as indirect costs as loss of production, was pegged at Rs 1.5 lakh crore in 2010 and has been rising significantly over the years. Pointing at rising costs, fewer generic developments, limited competition and huge mark-ups by pharmaceutical companies in the insulin space, the Lancet study says, "Substantial attention has been given to the issue of access to medicines for communicable diseases; however, access to essential medicines for diabetes, especially insulin, has had insufficient focus."

Highlighting the factors affecting affordability, the study says one possible explanation is the market domination by three multinational companies, which control 99% of the global insulin market in terms of value and 96% in terms of volume.

Insulin is used by all people with Type 1 diabetes and up to a quarter of those with Type 2 disease to control blood sugar and regulate metabolism.

In India, most of the insulin that is used is imported. Doctors say hike in prices of insulin is also largely driven by its indiscriminate use by doctors, apart from active promotion of newer first-line insulin by various pharmaceutical companies.




संदर्भ -सामिग्री :-

http://timesofindia.indiatimes.com/india/Yearly-spend-on-diabetes-is-Rs-1-5-lakh-crore-rising-by-30-per-annum/articleshow/50909542.cms


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