रविवार, 31 जुलाई 2016

मल खाने का इतना ही शौक था तो खुद चढ़ जाते मेमन की जगह फांसी पर

Virendra Sharma shared a memory.
1 hr
झझा उरझि सुरझि नही जाना ,रहियो झझकि नाही परवाना ,
कत झखि झखि अउरन समझावा ,झगरु कीए झगरउ ही पावा।
जिस मनुष्य ने (चर्चाओं में पड़कर निकम्मी )उलझनों में ही फंसना सीखा
,उलझनों में से निकलने की विधि न सीखी ,वह (सारी उम्र )भयभीत ही रहा ,
उसका जीवन स्वीकृत न हो सका।
वादविवाद कर -करके ,तर्क ,वितंडा खड़ा करके दूसरों को सीख देने का क्या
लाभ ?
चर्चा (तर्क पंडित बनके )करते हुए अपने आपको तो केवल मात्र चर्चा करने
,उलझने -उलझाने ,व्यर्थ की बहस करने की आदत ही पड़ गई।
विशेष: जीवन तर्क के सहारे नहीं चलता ,तर्क की अपनी सीमाएं हैं ,जहां तर्क
चुक जाता है ,जीवन वही से शुरू होता है।
1 Year Ago
See Your Memories
देश में इन दिनों जिन्नाओं को पैदा करने के हालात बनाये जा रहें हैं। जिन्नाओं की खेती के लिए बेशक उर्वरक ज़मीन कांग्रेस ने गत ६७ सालों में खाद पानी डालकर तैयार की है। देश साफ़ साफ़ राष्ट्रद्रोही और राष्ट्रवादी तत्वों में बँट चुका है।एक तरफ परम्परा गत भारत धर्मी समाज के लोग हैं तो दूसरी ओर कट्टर मज़हबी और खुलेआम पाकिस्तान परस्त मार्क्सवाद के बौद्धिक टट्टू और गुलाम वंशी सोनिया मायनो के अबौद्धिक चाटुकार। न्यायपालिका का देश के सर्वोच्च न्यायालय का खुला अपमान कर रहें हैं कुछ अबुआज़मी ,ओवैसी नुमा लोग, कलाम के दोनों मर्तबा राष्ट्रपति बन ने में विरोध के स्वर मुखर करने वाले रक्तरंगी ,बौद्धिकगुलाम -लेफ्टिए तथा कुछ चैनल। 

चैनलों पे मुठ्ठी बाँध कर बोलने वाली कुछ मोतरमाएं कुछ ऐसे बात कर रहीं हैं जैसे वे भारत तो क्या अमरीका को भी देख लेंगी। 

सवाल ये है... सवाल .ये है .....जबकि सवाल एक ही है मेमन की फांसी का विरोध करने वालों की लिस्ट बनाई जाए और इनके घर से एक -एक आदमी की शहादत ली जाए ,

मल खाने का इतना ही शौक था तो 

खुद चढ़ जाते मेमन की जगह फांसी पर।
मत भूलों बौद्धिक भकुओं वो दहशदगर्द जिन्होनें बामयान की कलात्मक बौद्ध प्रतिमाओं को भी नहीं छोड़ा वो जब आयेंगे तो उनके निशाने पे आप भी होंगें वो शक्ल देखकर वार नहीं करेंगे।
इन दिनों जो कुछ चंद चैनलिये प्रायोजित कर रहें हैं आग्रहमूलक सवाल पूछ रहे हैं याकूब की फांसी को लेकर वह सीधे सीधे जनहित याचिका का मामला बनता है और वह जमालो जो हुश हुश करके ४४ सांसदों से संसद में हंगामा करवाती है चुप है। वो जो प्रेसक्लब में जाकर संसद से पारित एक प्रस्ताव की कापी फाड़कर कहता है ये सब बकवास है ला -पता है।इन्हें बस एक ही चिंता है जमीन हड़पु जीजू को कैसे बचाया जाए देश जाए भाड़ में।
इसीलिए तो संसद में हंगामा ज़ारी है।

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