गुरुवार, 21 जुलाई 2016

प्राणी तू आया लाहा लैण ,लैगा कित कुफ़कड़ै , मुकदी चली रेन।

प्राणी तू आया लाहा लैण ,लैगा कित कुफ़कड़ै ,

मुकदी चली रेन।

ओ जीवात्मा तेरा मिशन प्रभ- नाव (प्रभु के नाम की )कमाई करना था ,तू किन व्यर्थ बातों में उलझ गया जबकि जीवन रुपी रैन वैसे ही कटती ,चुकती जाती है जैसे छिद्रिल घट (सुराख दार घड़े )से चूता -रिसता पानी।

सो क्यों मंदा आँखियै ,जित जमै राजाँ (राजे -महाराज जिसने जने हैं  ,पैदा किये हैं ,उस माता को ,औरत जात को ,नारी को ,क्यों छोटा आँकते  हो , क्यों बुरा कहते हो ,क्यों पैर की जूती समझते हो ।

चेतना है तो चैत लै ,निसदिन में प्राणी ,

खिनखिन (पल -छिन ,हर -पल, पलांश) में ओध(तेरी आयु ) बिहात (बीत रही है )है,

फूटै घट जो पानी।

अभी भी चेत जा ,तेरी आयु निरन्तर रीते होते घड़े सी  घट -बीत रही है।

राम बोले ,रामा बोले ,राम बिना कोई बोले रे।

सबमें से वही  बोल रहा है  ,वह वाणी की भी वाणी है। हर मुख का सम्भाषण है।

घर की नार सगल हित जास्यो ,रहत सगल संग लागी ,

प्रेत प्रेत कर भागी।

भावार्थ :कबीर कहते हैं वही घर की नार,तेरी औरत जिसके सारे हित तुझसे जुड़े थे ,प्राणी जब तू शरीर छोड़ गया ,प्रेत -प्रेत कहकर भागी। उसे भी जल्दी है ,शव को घर से बाहर निकालने की ,मिट्टी को ठिकाने लगाने की।

मन फूला फूला फिरै ,जगत में झूठा नाता रे ,

जब तक जीवै माता रोवै ,बहन रोये दस मासा रे ,

(और )तेरह दिन तक तिरिया रोवे ,फेर करै ,घर वासा से।

कबीर कहते हैं जीव जब तू काया छोड़ गया -तेरे जाने के बाद तेरी माँ जीवन भर रोई ,बहन दस मास तक और तेरी भगिनी ,तेरी स्त्री (तेरी औरत )सिर्फ तेरह दिन तक। इसके बाद उसने दूसरा घर बसा लिया। किस भरम में था,  रे तू ।


1 टिप्पणी:

दिगम्बर नासवा ने कहा…

गहरे वचन .... इंसान शायद बहुत कुछ जानता है पर फिर भी आँख मूंदे रहता है इन सच्चाइयों से जीवन की ....