मंगलवार, 30 अगस्त 2016

तमाम तप -तीर्थ व्यर्थ हैं निंदक के

तमाम तप -तीर्थ व्यर्थ हैं निंदक के 

यदि कोई अड़सठ तीर्थों का स्नान करे ,बारह शिव मंदिरों (द्वादश शिवलिंगों -सोमनाथ ,किष्किंधा ,पुरी ,नर्मदा ,देवगढ़ ,पूना या अब पुणे ,रामेश्वरम,द्वारका ,काशी अब वाराणसी ,गोदावरी ,अमरनाथ और औरंगाबाद  )के अतिरिक्त बारह मूर्तियों (आराध्य देव- प्रतिमाओं )-विष्णु ,लक्ष्मी ,शिव ,पार्वती ,ब्रह्मा ,सरस्वती ,यम ,गणेश ,दुर्गा ,भैरों ,सूर्य और चन्द्र )को पूज ले ,यदि वह स्नान- ध्यान के अनेक स्थान बनाए ,तो भी साधु की निंदा करने से उसका सब पुण्य व्यर्थ हो जाएगा। (१ ).

साधु की निंदा करने वाले का कभी उद्धार नहीं होता ; निश्चय जानो कि वह नरक में ही पड़ेगा (१ ). (रहाउ ).

यदि वह जीव सूर्य ग्रहण के समय कुरुक्षेत्र में स्नान करे ,सोलह श्रृंगार युक्त स्त्री का दान करे ,समस्त स्मृतियों की कथा अपने कानों से सुने ,किन्तु एक निंदा करने मात्र से उसके ये सब गुण व्यर्थ हो जाते हैं। (२ ).

यदि वह प्रभु मंदिर में प्रसाद चढ़ाये ,भूमि का दान करे और महलों में सुशोभित हो ; अपना कार्य बिगाड़कर भी दूसरे का कार्य सँवारे तो भी निंदा करने के कारण वह संसार की भौतिक यौनियों में (चौरासी के चक्र में )भटकता रहेगा। (३) .

संसार उसकी निंदा किसलिए करे ,निंदक का तो अपना प्रसार ही बहुत होता है और कभी भी उसका पोल खुल जाता है। संत रविदास कहते हैं कि हमने निंदक पर खूब सोच -विचार की है (और यह निष्कर्ष निकाला है कि )वह पापी निश्चय ही नरक को सिधारता है। (४ ).

जे ओहु अठिसठि तीर्थ न्हावै। जे ओहु दुआदस सिला पुजावै। करै निंद सभ बिरथा जावै। (१) .

साध का निंदक कैसे तरै। सरपर जानहु नरक ही परै। (१ )(रहाउ ).


जे ओहु ग्रहन करै कुलखेति। अरपै नारि सीगार समेति। सगळी सिंम्रिति स्रवनी सुनै। करै निंद कवनै नही गुनै। (२) .

जे ओहु अनिक प्रसाद करावै। भूमि दान सोभा मंडपि पावै। अपना बिगारि बिरांना सांढै। करै निंद बहु जोनी हांढै। (३).

निंदा कहा करहु संसारा। निंदक का परगटि पाहारा। निंदकु सोधि साधि बीचारिआ। कहु रविदास पापी नरकि सिधारिआ। (४ ).





साधौ   निंदक मित्र हमारा। 

सुखी रहो निंदक जग माहिं  ,रोग न हो संसारा।

हमरी निंदा करने वाला ,उतरे भवन  विसारा । 

निंदक के चरणन  की अस्तुति, (दासों) वाथो बारमबारा। 

चरण दास कहें सुनिये साधु ,निंदक साधक वारा।  

साधौ   निंदक मित्र हमारा। 

निंदक नियरे राखिये ,आँगन कुटी छवाय।

बिन पानी साबुन बिना निर्मल होत सुभाय(सुभाव ).

sadhu nindak mitra humare//rajendra das ji maharaj//sant mahima

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Published on oct 30, 2014
album thakur hamre raman bihari

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