शुक्रवार, 5 अगस्त 2016

बिनु गुर गरबु न मेटिआ जाइ। गुरमति धरमु धीरजु हरिनाई। नानक नाम मिलै गुण गाइ।

ब्रह्मै गरबु कीआ नही जानिआ। बेद  की बिपति पड़ी पछुतानिआ।

जह प्रभ सिमरे तही मनु मानिआ। (१ )

ऐसा गरबु बुरा संसारै ,जिस गुरु मिलै तिसु गरबु निवारै। (रहाउ ) ।

बलि राजा माइआ अहंकारी। जगन करै बहु भार अफारी।

बिन गुर पूछे जाइ पइआरी। (२ )

हरीचंदु दानु करै जसु लेवै। बिन गुर अंतु न पाइ अभेवै।

आपि भुलाइ आपे मति देवै। (३ )

दुरमति हरणाखसु दुराचारी। प्रभु नाराइणु गरब प्रहारी।

प्रहलाद उधारे किरपा धारी। (४ )

भूलो रावणु मुगधु अचेति। लूटी लंका सीस समेति।

गरबि गइआ बिनु सतिगुर हेति। (५)

सहसबाहु मधुकीट महिखासा। हरणाखसु ले नखहु बिधासा।

दैत संघारे बिनु भगति अभिआसा। (६ )

जरासंधि कालजमुन संघारे। रकतबीजु कालुनेमु बिदारे।

दैत संघारि संत निसतारे। (७ )

आपे  सतगुरु  सबदु बीचारे। दूजै भाई दैत संघारे।

बूडा दुरजोधनु पति खोई। रामु न जानिआ करता सोई।

जन कउ दूखि पचै दुखु होई (९ )

जनमेजै गुर सबदु न जानिआ। किउ सुखु पावै भरमि भुलानिआ।

इकु तिलु भूले बहुरि पछुतानिआ। (१० )

कंसु केसु चांडूरु न कोई। रामु न चीनिआ अपनी पति खोई।

बिनु जगदीस न राखै कोई। (११ )

बिनु गुर गरबु न मेटिआ जाइ। गुरमति धरमु धीरजु हरिनाई।

नानक नाम  मिलै गुण गाइ। (१२ )

भावार्थ :ब्रह्मा ने अहंकार किया (कि मैं इतना बड़ा हूँ ,कमलनाभि से कैसे उत्पन्न हो सकता हूँ ?) उसने परमात्मा की अनन्तता को नहीं समझा ,जब उसका अभिमान तोड़ने के लिए उसके वेदों के चुराये जाने की विपत्ति आ पड़ी तो वह बहुत पछताया। जब उसने परमात्मा को स्मरण किया तब उसे विश्वास आया (कि परमात्मा ही सबसे महान है )(१ ).

जगत में अहंकार एक  ऐसा विकार है जो बहुत नीच है (निम्नस्तरीय है ).जिस (भाग्यशाली मनुष्य )को गुरु मिल जाता है (वह उसका अहंकार दूर कर देता है  . (१ )। रहाउ ।

राजा बलि को माया का मान हो गया। उसने बड़े यज्ञ किये। अहंकार में बहुत अभिमानी हो गया। अपने गुरु की सम्मति (राय ,सलाह )लिए बिना (उसने ब्राह्मण -रूपधारी विष्णु को दान देना मान लिया और )पाताल में चला गया। (२ ).

हरिश्चंद्र (भी )दान करता था ,दान की शोभा में मस्त (रहा );गुरु के बिना वह भी यह न समझ सका कि परमात्मा के गुणों का अंत नहीं है , उसका भेद नहीं पाया जा सकता (उसकी दृष्टि में अनगिनत दानी हैं ),(पर जीव के क्या वश ?)परमात्मा आप ही बुद्धि देता है। (३ ).

दुर्मति के कारण हिरण्यकशिपु दुराचारी हो गया। पर नारायण प्रभु आप ही (अहंकारियों का )अहंकार दूर करने वाला है। उसने कृपा की और प्रह्लाद की रक्षा की (हिरण्यकशिपु का अभिमान भंग किया )(४ ).

मूर्ख रावण अज्ञानवश कुमार्गी हो गया। (परिणामस्वरूप )उसकी लंका लूटी गई और उसका सिर भी काटा गया  . अहंकार के कारण ,गुरु की शरण लिए बिना ,अहंकार के मद  में रावण बर्बाद हुआ। (५ ).

सहस्रबाहु (को परशुराम ने मारा ),मधु तथा कैटभ (को विष्णु ने मार दिया ),महिषासुर (दुर्गा के हाथों मृत्यु को प्राप्त हुआ )हिरण्यकशिपु (को नृसिंह ने )नाखूनों से मार दिया। ये समस्त राक्षस प्रभु की भक्ति से खाली होने के कारण मारे गए। (६ ).

परमात्मा ने राक्षस मार के संतों की रक्षा की। जरासंध तथा कालयवन (श्रीकृष्ण के द्वारा )नष्ट किये गए (मारे गए ,उद्धार किया कृष्ण ने इनका भी अपनी अहेतुकी कृपा से ).रक्तबीज (दुर्गा के हाथों )मारा गया तथा कालनेमि (विष्णु के त्रिशूल से )चीरा गया। (७ ).

(इस समस्त क्रीड़ा का लीला का स्वामी परमात्मा )आप ही गुरु-रूप होकर अपनी गुणस्तुति  की वाणी को विचारता है। ,आप ही दैत्यों को माया के मोह में फंसाकर मारता है ,आप ही गुरु की शरण पड़े व्यक्तियों को अपने स्मरण में ,अपनी भक्ति में जोड़कर (संसार समुद्र से )पार उतारता है। (८ ).

दुर्योधन (अहंकार में )डूबा और अपनी प्रतिष्ठा गँवा बैठा। (अहंकारवश )उसने परमात्मा को स्मरण न रखा। परंतु जो परमात्मा के दास को दुःख देता है (वह उस )दुःख के कारण आप ही दुखी होता है ,उसे आप ही वह दुःख (मृत्युकारक हो जाता है ).(९ ).

राजा जनमेजय ने अपने गुरु की शिक्षा को न समझा (लेकिन अहंकार के कारण )भ्रम  में पड़कर कुमार्गगामी हो गया। फिर सुख कहाँ से मिलता ?थोड़ी सी भूल होने पर दोबारा पश्चाताप किया। (१० ).

कंस ,केशी और चांडूर (के बराबर कोई न था )(पर अहंकारवश )इन्होनें परमात्मा की लीला को न समझा और अपनी प्रतिष्ठा गँवा ली। (अपनी  शक्ति का अहंकार मिथ्या है )करतार के अतिरिक्त दूसरा कोई (किसी की )रक्षा नहीं कर सकता। (११ ).

(अहंकार बहुत शक्तिशाली है )गुरु की शरण लिए बिना इस अहंकार को कोई मिटा नहीं सकता। जो मनुष्य गुरु की शिक्षा धारण करता है ,गुरु की मानता है गुरु के कहे पे चलता है ,वह (अहंकार मिटाकर )धैर्य धारण करता है ,(धैर्य बड़ा महान )धर्म है.

हे नानक ! गुरु की शिक्षा पर चलने से ही परमात्मा का नाम प्राप्त होता है ,और जीव परमात्मा की  गुणस्तुति करता है। (१२ ). 




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