शनिवार, 30 सितंबर 2017

क्या है ब्ल्यू -बेबी -सिंड्रोम ?

चिकित्सा शब्दावली में बात करें तो कुछ ऐसे बालक होते हैं जिनके साथ नियति ऐसे खेल खेलती है कि इनका नन्ना दिल गर्भावस्था में ही कुछ ऐसी विकृतियों का शिकार हो जाता है जो जन्म के बाद ही  अपनी करामत दिखातीं हैं मसलन इन बदनसीबों को ऑक्सीजन युक्त रक्त की आपूर्ति ठीक से नहीं हो पाती। इनकी चमड़ी का नीला रंग रक्त इसी Deoxygenated state का परिणाम होता है। खून का रंग तभी लाल होता है जब उसे पूरी ऑक्सीजन मिलती हो ,ठीक से उसका ऑक्सीजनीकरण होता रहे।

सामन्यतया चार कमरों वाले हमारे दिल में यह व्यवस्था स्वयं चालित तरीके से संपन्न होती रहती है बाएं प्रकोष्ठ (या हृद कक्ष या निलय )में ऑक्सीजनयुक्त रक्त रहता है दाएं में ऑक्सीजन  वंचित वह रक्त रहता है जो तमाम ऊतकों और कोशिकाओं की  सैर करके लौटा है।

कभी कभार साइनोटिक (Cynotic Child )या Blue Baby ऐसे  बदनसीबों को भी कह दिया जाता है जिनके फेफड़े रक्त को ऑक्सीजन मुहैया करवाने का सामन्य काम ही ठीक से नहीं कर पाते हैं।

साइनोटिक का अर्थ होता है नीला।

एक और मेडिकल कंडीशन पैदा होती है ऐसे भूजल के इस्तेमाल से जिसमें नाइट्रेटों की मात्रा मानक स्वीकृत मात्रा से ज्यादा पाई गई है। गौर तलब है आज अनेक रासायनिक खादों के बे -हिसाब के इस्तेमाल से ,नगरों की चौहद्दी में ही भूमि में दफन किये शहरी मलबे से ,Pit latrines से रिस कर यह नाइट्रेट भू -जल को तमाम एक्वीफायर्स को लगातार संदूषित कर रहे हैं। बस कुछ विकसित राष्ट्रों को छोड़ दीजिये जहां लोग अब सम्भल रहे हैं।

शिशुओं का पाचन तंत्र इन नाइट्रेटों को तब्दील कर देता है -नाइट -राइट में ,यही नाइट्राइट रक्त में मौजूद ऑक्सीहीमोग्लोबीन से प्रतिक्रिया करके उसे असरग्रस्त कर मीथे -ग्लोबिन में बदल देता है। यह मीथे -ग्लोबिन ऑक्सीजन का वाहन नहीं बन सकती है। जबकि ऑक्सी -हीमोग्लोबिन को जो ब्लड प्रोटीन हीमोग्लोबिन का एक सक्षम वाहन होता है यह नाकारा बना के छोड़ देती है। इसी प्रोटीन की वजह से ही तो खून का रंग लाल रहता है जिसके अभाव में अब वह नीलापन लेने लगता है जो चमड़ी और असरग्रस्त साइनोटिक शिशु के  इतर अंगों में प्रकट होता है। उंगलियां और नाखून भी इस विकृति से असरग्रस्त होते  हैं।ऐसे में नाखूनों की नेल प्लेट की घुमाव ,करवेचर या कॉन्वेकजीटी बढ़ जाती है।



देखें लिंक (http://www.medicinenet.com/script/main/art.asp?articlekey=24529)

कृपया उल्लेखित  सेतु भी देखें (https://www.google.com/search?q=what+is+blue+baby+syndrome&rlz=1CAACAP_enUS646US647&oq=what+&aqs=chrome.0.69i59j69i60j69i57j69i59)

https://en.wikipedia.org/wiki/Blue_baby_syndrome

http://www.ecifm.rdg.ac.uk/bluebabs.htm

क्या है ब्ल्यू -बेबी -सिंड्रोम ?

शीर्षक :द्रव्य के बुनियादी कणों का माया -संसार

आज लोग यही समझते हैं ,इलेक्ट्रॉन (लैप्टॉन परिवार )वास्तव में द्रव्य की मूलभूत कणिकायें ही  हैं जो किन्हीं  और बुनियादी कणों  से नहीं निर्मित हुईं हैं। कल क्या हो इसका कोई निश्चय नहीं है। प्रोटोन के बुनियादी कण होने पर सवाल उठ ही चुका है।प्रोटोन्स तो क्वार्क्स हैं (क्वार्क्स की निर्मिति हैं इनका मटीरियल काज ,नैमित्तिक कारण क्वार्क्स हैं। यही हाल इसके सहोदर (न्यूक्लिस में इसके साथी )न्यूट्रॉन का है। न्यूट्रॉन और प्रोटोन क्वार्क्स ही हैं।अलबत्ता इलेक्ट्रॉन बुनियादी है लेपटोन परिवार का सदस्य है जिसके पांच सदस्य और हैं। लेप्टोज़ का मतलब होता है लाइटर देन न्यूक्लिओन्स (न्यूट्रॉन और प्रोटोन से हलके ).

दोहरा दें: प्रोटोन कुआरकों या क्वार्क्स (Quarks )की निर्मिति हैं जो दो "अप"तथा एक "डाउन" क्वार्कों का संगठ्ठ हैं प्रोटोन , बुनियादी नहीं हैं न ही न्यूट्रॉन बुनियादी हैं।

बुनियादी सिर्फ संख्या में छः लेपटोन कण हैं।और इतने ही यानी छः ही क्वार्क। कुल मिलाकर इन बारह कणों  से ही सृष्टि बनी है।

चार किस्म के प्राकृत बल सृष्टि में  कार्य करते हैं जिनसे संगत एक -एक फील्ड पार्टिकल रहता है।

"बोसॉन" -शेष सभी  कणों का कथित भगवान ,एक फील्ड पार्टिकिल ही है जो समझा जाता है कि शेष सभी द्रव्यमान युक्त कणों को द्रव्य की राशि उनका द्रव्यमान मुहैया करवाता है।अंतरिक्ष का वह हर भाग जो खाली है ऊर्जा - पदार्थ से वहां -वहां ये भगवान् है कण -देवता है।

पूरब कहता है कण -कण में भगवान हैं आज कण -भौतिकी ,विज्ञान कह रहा है सृष्टि में मौजूद सब कणों   का  एक ही भगवान् है  -God Of All Particles .इसके होने की पुख्ता पुष्टि होना अभी बाकी है अलबत्ता कयास लगा लिए गए हैं नतीजे भरोसे मंद अभी तक नहीं निकले हैं। ९५ फीसद ही प्रायिकता है संभावना है इसके वहां होने की जहां अभी तक इसे ढूंढा गया है (फ्रांस और स्विट्ज़रलेंड की सीमा पर फ्रांस के एक छोटे से गाँव में )वह भी एक सुरंग के  भीतर जहां कॉस्मिक रेडिएशन से यह बचा रहे ।वह रे भगवान तेरा भी बचाव करना पड़ता है।

बोसॉन -टोही प्रयोगों में  दो विपरीत दिशाओं से प्रोटानों को प्रकाश की चाल के ९० फीसद करीब लाके एक सर्कुलर व्यवस्था के तहत जो इन कणों को वेगवान बनाती है (पार्टिकली एक्सलरेटर )से दागा गया ,इसके टुकड़े -टुकड़े इस जोरदार टक्कड़ के बाद मिले इन अवशेषों में ही यहीं कहीं ये भगवान हो सकते हैं शेष कणों  के।

 इस कण - देवता का  सुराग मिले तो पता यह भी चले सृष्टि में कितना डार्क -मेटर और डार्क एनर्जी है कितना  कुल द्रव्य राशि (Mass of the universe )है।
 न्यूट्रॉन और प्रोटोन का तो ये हाल है कि परमाणु के केंद्र में इनकी परस्पर अदला बदली होती रहती है। माइकल जैक्शन की तरह इनका लिंग परिवर्तन होता रहता है। प्रोटोन कभी अपना आवेश खोकर न्यूट्रॉन बन जाता है तो न्यूट्रॉन आवेशित प्रोटोन।

न्यूट्रॉन भी तीन क्वार्कों से बनें हैं दो 'डाउन 'और एक "अप ".
जी हाँ कथित बुनियादी कणों के नाम और धाम ,थां -ठौर और लीला निराली ही है इसलिए नाम भी देख लीजिए क्वार्कों के -'अप' ,'डाउन' (स्ट्रेंज ,चार्म ,ब्यूटी वगैरह -वगैरह ).
अप-क्वार्क पर +२/३ इलेक्ट्रॉनी  चार्ज के तुल्य चार्ज होता है यानी ये आवेशित कण हैं। जबकि डाउन पर (-१/३ इलेक्त्रोनी चार्ज जितना आवेश रहता है।  कुल योग हो गया :प्रोटोन के लिए :

 (२/३ +२/३ -१/३ )=१  - इकाई इलेक्ट्रॉन आवेश ,

इलेक्ट्रॉन पर जितना धनात्मक आवेश रहता है १ -यूनिट उतना ही प्रोटोन पर धनात्मक आवेश रहता है।तभी तो परमाणु सामन्य स्थिति में आवेश रहित रहता है।क्योंकि इसमें सामान्य अवस्था में जितने प्रोटोन रहते हैं उतने ही इलेक्ट्रॉन भी जितना ऋण आवेश होता है उतना ही धन आवेश।

न्यूट्रॉन आवेश - हीन होने से दो डाउन और एक अप क्वार्क  का योग है यानी (+२/३ -१/३ -१/३ )=० (शून्य आवेश यानी कोई आवेश नहीं है न्यूट्रॉन पर ) .

वास्तव में द्रव्य की उस  कणिका को मूलभूत या बुनियादी कण कहा जा सकता है जो अपने से और ज्यादा बुनियादी कण या कणों का जमा जोड़ न हो आगे जिसमें कोई संरचना न होवें।आज हालत यह है जिन्हें हम द्रव्य के बुनियादी कण या मूलभूत कण (Fundamental Particles Of Matter )माने समझे हुए हैं उनमें में  से कई इतने अल्पकालिक और क्षणभंगुर हैं जैसे असेम्ब्ली लाइन से निकल नै नवेली कोई कार अपने ट्रायल -रन के दौरान ही फैक्ट्री के गेट पर ही टुकड़ा -टुकड़ा होकर बिखर जाए। और इनके होने उंगलियों के निशाँ भी पार्टिकिल टोही युक्तियों (Particle Detectors )को मिलते भी हैं तो बिखरे -बिखरे ,आधे -अधूरे। बस उनसे ही कयास -अनुमान लगाए जाते हैं इनके 'होने' के।

इस पैमाने पर केवल क्वार्क्स और लेपटोन परिवार के सदस्य ही बुनियादी समझे गये  हैं। जो "कण -देव"कथित गॉड -पार्टिकिल  द्रव्य को उसका द्रव्यमान मुहैया करवाता है कणों को उनका भार ,सृष्टि को उसका अस्तित्व (होना )फिलवक्त उसके बारे में निश्चित तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता। ईश्वर की तरह ही अचिन्त्य बना हुआ है ,अवधारणा तक ही सीमा -बद्ध बना हुआ है। योरपीय न्यूक्लिअर रिसर्च सेंटर के अब तक के परीक्षण और उनसे निकाले गये निष्कर्ष अभी तक अनुमान-गुमान  ही बने हुए हैं।

समझा जाता है लेप्टोनों और क्वार्कों को परस्पर जोड़े रखने वाले बिखरने से बचाये रखने वाले कण बोसॉन भी हैं। यानी तीन परिवार हो गए बुनियादी कणों के। बल के वाहक कणों का एक परिवार और दो परिवार लेपटोन और क़्वार्क्स के.  बल के वाहक कण ही हैं बोसॉन। हिग्स बोसॉन या  गॉड का दर्ज़ा पाए बोसॉन की चर्चा संकेत रूप में हम ऊपर कर आयें  हैं जो सभी द्रव्य -मान वाले कणों को उनका ये बुनियादी गुण द्व्यमान मुहैया करवाता है। । आकाश -पाताल एक कर रखा है कण -भौतिकी के माहिरों ने लेकिन इनके पगचिन्ह होने के निशाँ अभी तक नदारद हैं इनका कोई सुराग फुराग नहीं मिल सका है अभी तक ,कयास भर हैं।

अलबत्ता इस्ट्रॉन्ग  न्यूक्लिअर फ़ोर्स (शक्तिवान बल के वाहक बोसॉन को ग्लुआन कहा गया है।  ).
न्यूक्लियस के अंदर न्यूट्रॉन -प्रोटोन जोड़ीदार इसी शक्तिशाली बल के वाहक ग्लुओन के परस्पर क्वार्कों के बीच होने वाले आदान  प्रदान का परिणाम बने रहते हैं।

गुरुत्वीय बल के वाहक ग्रेविटोन कहे गए हैं जो आदिनांक पकड़ में  न आये हैं।अवधारणा में ही बने सिमटे हुए हैं।

कुलमिलाकर कुदरत में चार प्रकार के प्राकृत बल पाए गयें  हैं :

(१ )स्ट्रॉंग न्यूक्लिअर फ़ोर्स (शक्तिशाली नाभिकीय बल ):शार्ट रेंज यानी कम परास कम दूरी तक अपना असर दिखाता है यह बल  नाभिक के अंदर -ही अंदर क्वार्कों  पर पड़ता है उन्हें ही असरग्रस्त करता है। आखिर  नाभकीय कण न्यूट्रॉन और प्रोटोन के अवयव ही तो हैं क्वार्क। ग्लुओन बनते हैं इस बल के वाहक।फील्ड पार्टिकिल कह सकते हैं आप इसे।

(२)वीक -न्युक्लीअर फ़ोर्स (कमज़ोर नाभिकीय बल ):यह कमज़ोर बल लेप्टानों और क्वार्कों के बीच कार्य करता है और इसकी सीमा भी न्युकिअस के अंदर-अंदर  ही सिमटी रहती है। दो किस्म के बोसॉन (w -boson और z-boson )बनते हैं इस बल के वाहक।

(३ )इलेक्ट्रोमेग्नेटिक फ़ोर्स (विद्युतचुंबकीय बल ):यह बल लेप्टानों और क्वार्कों के बीच सभी  दूरियों तक पड़ता है। फोटोन बनते हैं इस बल के वाहक। फोटोन  प्रकाश का क्वांटम है यानी  प्रकाश की सबसे छोटी इकाई जिसका और आगे विभाजन नहीं है। द्रव्यमान शून्य होता है प्रकाश का यह सबसे नन्ना कण। और इसीलिए सबसे द्रुत बना रहता है।

(४) गुरुत्वीय बल (फ़ोर्स आफ ग्रेविटी ):यह भी लेप्टानों और क्वार्कों के बीच ही पड़ता है लेकिन सभी दूरियों तक काम करता है ,वास्तव में इसका असर अनंत तक पड़ता है। अभिकल्पित कण ग्रेविटन  बनते हैं इस बल के वाहक।

एक मोटा नियम यह है जितना अधिक ताकतवर बल उतनी ही कमतर उसकी एक्शन -रेंज यानी परास .

stronger the force shorter  its range of action .

गुरुत्व बल सबसे कमज़ोर बल है (माइक्रोस्कोपिक लेवल पर )अलबत्ता मैक्रो -लेवल पर तमाम नीहारिकाओं ,अंतरिक्ष के तमाम मनोरम पिण्डों का सम्मिलित प्रभाव पूरी सृष्टि को चलायमान रखे है। इस स्तर पर यह सबसे शक्तिशाली बल हो उठता है )  इसीलिए इसका असर अनंत दूरी तक पड़ता है इसीलिए न्यूटन ने कहा था -

when you a raise a finger the gravitaional balance of the universe is disturbed .

जो हो सब कुछ माया की तरह बना हुआ है जिसे धर्म शास्त्र और दर्शन अनिवर्चनीय कहता है ,जो है भी नहीं भी है और दोनों ही नहीं है। "सो माया "-यानी जो होवे न लेकिन प्रतीत हो जिसके होने की ।

 ये सृष्टि ऐसी ही है जो बारहा  बनती है बार -बार  बिगड़ती है फिर बनती है एक कालावधि के बाद। ऐसे में किसी चीज़ के बुनियादी होने का प्रश्न ही कहाँ पैदा होता है।

पुनरपि जन्मम ,पुनरपि मरणम ,

पुनरपि जठरे जननी शयनम।

शीर्षक :द्रव्य के बुनियादी कणों  का माया -संसार

विशेष :(१ )द्रव्य के प्रत्येक बुनियादी कण परिवार के लिए या उससे संगत एक क्षेत्र या फील्ड होता है मसलन इलेक्ट्रॉनों के लिए एक इलेक्ट्रॉन फील्ड होता है जिसका क्वांटा (यह बहुवचन होता है  क्वांटम का  )या  एनर्जी पेकिट इलेक्ट्रॉन ही होता है अखंडनीय है यह कण। विद्युतचुंबकीय क्षेत्र के लिए क्वांटा फोटोन होते हैं (प्रकाशऊर्जा  का एक पेकिट  ),विद्युतचुंबकीय ,कमज़ोर और शक्तिशाली बलों के लिए वाहक क्वांटा गेज बोसॉन होते हैं।



(१)There is one kind of field for every type of elementary particle. For instance, there is an electron field whose quanta are electrons, and an electromagnetic field whose quanta are photons. The force carrier particles that mediate the electromagnetic, weak, and strong interactions are called gauge bosons.



(२ )हिग्स बोसॉन को गॉड पार्टिकल नवाज़े जाना पीटर हिग्स समेत कई भौतिकी के माहिरों को रास नहीं आया है। इसे उन्होंने टीआरपी भूख से ग्रस्त इलेक्त्रोनी मीडिआ की सनसनी फैलाना बतलाया है। पार्टिकिल फ़िज़िक्स के स्टेंडर्ड मॉडल में हिग्स बोसॉन अनावेशित शून्य आवेश या शून्य कलर ,शून्य घूर्णन नर्तन या स्पिन वाला कण है। यहां कलर का वास्तव में रंग से कुछ लेना देना नहीं है। 

Image result for what is the God Particle ?why it is called God of all particle ?
In mainstream media the Higgs boson has often been called the "God particle", from a 1993 book on the topic; the nickname is strongly disliked by many physicists, including Higgs, who regard it as sensationalistic. In the Standard Model, the Higgs particle is a boson with no spin, electric charge, or colour charge.

संदर्भ -साणिग्री :

(१ )https://www.google.com/search?q=Fundamental+Particles+of+matter+%2Care+they+really+fundamental&rlz=1CAACAP_enUS646US647&oq=Fundament

(२) https://www.ck12.org/c/physical-science/fundamental-particles/lesson/Fundamental-Particles-MS-PS/
(३  )http://www.ibtl.in/video/6425/discovery-of-higgs-boson-god-particle-ibtl-exclusive-interview-with-dr-meenakshi-narain/
(४)https://www.theguardian.com/commentisfree/2012/jul/03/higgs-boson-western-science
(५ )http://atheistnexus.org/group/originsuniverselifehumankindanddarwin/forum/topics/is-the-god-particle-a-myth-stephen-hawkings-bet-against-it-s
(६)https://books.google.com/books?id=A6IlBAAAQBAJ&pg=PT68&lpg=PT68&dq=God+particle+myth+or+reality&source=bl&ots=k2_GaQtrUC&sig=1Mh2

(७ )https://en.wikipedia.org/wiki/Fundamental_interaction

(८ )https://www.britannica.com/science/fundamental-interaction









क्या लाइलाज रक्त कैंसर मायो -लोमा का इलाज़ सम्भव है ,क्या हैं विकल्प ?प्रोग्नोसिस ?

क्या लाइलाज रक्त कैंसर मायो -लोमा का इलाज़ सम्भव है ,क्या हैं विकल्प ?प्रोग्नोसिस ?यानी रोगमुक्त होने की संभावना (मीज़ान ). 
इलाज़ का मामला इस बात पर निर्भर करता है ,रोग किस चरण में है बिना लक्षणों वाला (Smoldering Myoloma ,SMM)बना हुआ है या प्रकटीकरण हो चुका है उग्र लक्षणों का जो मुखरित हैं। SMM के लिए लक्षणों के प्रकटीकरण से पहले इलाज़ ज़रूरी नहीं समझा गया है और ऐसा चंद बरसों महीनों से लेकर बरसों बरस भी रह सकता है। 

(१) उग्र लक्षण मायलोमा के मामलों के लिए परम्परा गत रसायन चिकित्सा (कीमो -थिरेपी )और विकिरण (Radiation Therapy )उपलब्ध है।

(२ )कभी -कभार स्टीरॉइड्स भी दिए जाते हैं 

(३ )रेडियोथिरेपी उन मामलों में दी जाती है जिनमें लोकलाइज़्ड बॉन -पेन(हड्डियों में दर्द लोकेलाइज़्ड ट्यूमर्स यानी कैंसर गांठ के पैदा होने से होने लगा है )रेखांकित हो चुका है ऐसा ट्यूमर स्थानीय तौर पर।  

(४) हड्डियों की नुकसानी के कुछ मामलों में कभी -कभार यूं बिरले ही मामलों में शल्य चिकित्सा भी की जाती है। (बॉन प्लास्टी ). 
(५) कुछ मामलों में अस्थि -मज़्ज़ा प्रत्यारोप (Bone -Marrow -Transplant )आज़माया जाता है,जो लक्षणों पर निर्भर करता है। 

इसके अंतर्गत मरीज़ का अपना अस्थि -मज़्ज़ा भी लिया जा सकता है (autologous  or stem cell trasplantation ).प्रत्यारोप के लिए कलम कोशिकाएं किसी डोनर की भी ली जा सकती हैं  (allogenic bone marrow transplant ).
कस्टमाइज़्ड ट्रीटमेंट के दौर में हम कदम रखने लगें हैं। जीनोमिक चिकित्सा भी आज़माई जा रही है कलम -कोशा चिकित्सा भी जिसमें अस्थि मज़्ज़ा के DNA से पहले  जीन नक्शा तैयार किया जाता है। किसी  एक मरीज़ के लक्षण दूसरे से एकदम मिलते हों यहां यह बिलकुल भी ज़रूरी नहीं है।  
सहायक चिकित्सा के रूप में हर्बल ट्रीटमेंट भी लिया जा सकता है अन्य विकल्प भी बस ऐसी वैकल्पिक चिकित्सा पार्श्व प्रभावों से तालमेल बिठाने में मददगार हो सकती है। 

Astragalus  इस रोग में कमतर रह गये वाइट ब्लड सेल्स की भरपाई कर सकता है। प्लाज़्मा सेल्स इन्हीं की एक किस्म होती हैं जिन्हें एब्नॉर्मल प्रोटीन इस रोग में बे -असर एवं घटाकर कमतर करने लगतीं हैं -खुद अपाना कुनबा बढ़ा कर। 
आज अभिनव दवाएं ,दवाओं की अनेकानेक किस्में उपलब्ध है। रणनीति प्लाज़्मा सेल्स की नुकसानी को कमतर करने मुल्तवी रखने की रहती है ताकि मरीज़ अधिक से अधिक नार्मल स्टेट में रह सके ,महसूस कर सके नीअर नॉर्मेलेसि को  . लांजेविटी को लगातार बढ़ाने में सहायक सिद्ध हो रहीं हैं नूतन दवाएं और इनके कॉम्बो। आस पे दुनिया कायम है। कुदरत का अपना विधान भी काम करता है।मोहलत के कुछ और बरस इलाज़ मुहैया करवा रहा है। 

सन्दर्भ -सामिग्री :http://www.prokerala.com/health/diseases/cancer/myeloma.htm 

रक्त कैंसर मायलोमा रोग का पेचीला पन

रक्त कैंसर मायलोमा रोग का पेचीला पन मरीज़ की काया पर इसके अब तक पड़  चुके असर और मौजूदा लक्षणों पर निर्भर करता है जो किन्हीं दो मरीज़ों के यकसां (एक जैसे )नहीं रहते हैं। प्लाज़्मा सेल कैंसर (मायो -लोमा )से किसी व्यक्ति के असर-ग्रस्त होने पर यह रोग उस व्यक्ति में कोशिका निर्माण की सामान्य  -स्वस्थ -परम्परा को ध्वस्त करके कैंसरप्लाज़्मा सेल्स की संख्या को बढ़ाने लगता है। इसी से मायो -लोमा में इसके इलाज़ के बावजूद  कई किस्म का पेचीला -पन देखा जाता है।

मूलतया यह पेचीलापन अस्थियों ,खून और हमारी किडनियों (गुर्दों )पर बुरा असर डालता है।

(१) अस्थि -ह्रास (bone loss )बड़ी एहम समस्या के रूप में ८५ फीसद मामलों में देखने में आया है। रीढ़ की गुर्री (Spine ),पसली -पिंजर (Rib Cage )और पेल्विस (Pelvis या श्रोणि प्रदेश )इसकी लपेट में आके असरग्रस्त होता है।

यूं बिस्फोस्फोनेट (bisphosphonates) या विकिरण चिकित्सा(Radiation Therapy ) इसकी रोकथान या उग्रता को कम करने  के लिए काम  में ली जाती है।

(२)खून की कमी (Anemia ) :मायो -लोमा सेल्स या कैंसर की चपेट में आई प्लाज़्मा सेल्स की संख्या के बे -तहाशा बढ़ते चले जाने से इस रोग में स्वस्थ प्लाज़्मा सेल्स (जो वाइट ब्लड सेल्स की ही एक किस्म होतीं हैं )के साथ -साथ ,रेडब्लड सेल्स और प्लेटलेट्स की संख्या भी कम होती जाती है। यही वजह है के रोग के पुख्ता हो चुके मामलों में ६० फीसद तक मामलों में खून की कमी हो जाती है।

(३)गुर्दे अपनी पूरी क्षमता  से काम नहीं करते (Kidney Failure ):क्योंकि मायलोमा ग्रस्त व्यक्ति के मामलों में स्वस्थ  प्लाज़्मा सामान्य  प्रोटीनों के स्थान पर एब्नॉर्मल प्रोटीन (पैरा -प्रोटीन )और M-प्रोटीन बनाने लगतीं हैं साथ ही खून  में  कैल्शियम का स्तर बढ़ता जाता है इसलिए गुर्दों का खून को निथारते रहने फ़िल्टर करते रहने का काम बढ़ जाता है।यह काम अब न तो पूरा हो पाता न ठीक से ही होता है इसलिए पेशाब भी कम बनने लगता है ।सामन्य से कम आने लगता है। हेजिटेशन टाइम  भी बढ़ता है।

(४) क्योंकि मायो -लोमा मरीज़ के मामलों में रोगरोधी तंत्र के मुस्तैद सिपाहियों - वाइट ब्लड सेल्स- की संख्या भी कम हो जाती है इसीलिए बारहा होते रहने वाले इंफेक्शन (संक्रमण )मरीज़ का पिंड नहीं छोड़ते ,घेरे ही रहते हैं जब तब। क्योंकि इस रोग में एब्नॉर्मल प्रोटीनें (या एंटीबॉडीज़ )सामान्य रोगरोधी एंटीबॉडीज़ से ज्यादा हो जाती है इसलिए हमारा इम्यून सिस्टम ही कमज़ोर हो जाता है कम्प्रोमाइज़्ड इम्यून सिस्टम कहलाने लगता है।

अभिनव दवाएं ,इन दवाओं की किस्में ,जीनोम -चिकित्सा ,कस्टमाइज़्ड ट्रीटमेंट की और ले जाने में आगे बढ़ रहीं हैं उम्मीद की जा सकती है मायो -लोमा का पेचीला -पन कमतर होता जाएगा।

शीर्षक :मायलोमा इलाज़ में पेचीला -पन   (Complications in Mayoloma Treatments )

सन्दर्भ -सामिग्री :

(१)https://www.themmrf.org/multiple-myeloma/multiple-myeloma-complications/

रक्त कैंसर मायलोमा रोग का पेचीला पन

रक्त कैंसर मायलोमा रोग का पेचीला पन मरीज़ की काया पर इसके अब तक पड़  चुके असर और मौजूदा लक्षणों पर निर्भर करता है जो किन्हीं दो मरीज़ों के यकसां (एक जैसे )नहीं रहते हैं। प्लाज़्मा सेल कैंसर (मायो -लोमा )से किसी व्यक्ति के असर-ग्रस्त होने पर यह रोग उस व्यक्ति में कोशिका निर्माण की सामान्य  -स्वस्थ -परम्परा को ध्वस्त करके कैंसरप्लाज़्मा सेल्स की संख्या को बढ़ाने लगता है। इसी से मायो -लोमा में इसके इलाज़ के बावजूद  कई किस्म का पेचीला -पन देखा जाता है।

मूलतया यह पेचीलापन अस्थियों ,खून और हमारी किडनियों (गुर्दों )पर बुरा असर डालता है।

(१) अस्थि -ह्रास (bone loss )बड़ी एहम समस्या के रूप में ८५ फीसद मामलों में देखने में आया है। रीढ़ की गुर्री (Spine ),पसली -पिंजर (Rib Cage )और पेल्विस (Pelvis या श्रोणि प्रदेश )इसकी लपेट में आके असरग्रस्त होता है।

यूं बिस्फोस्फोनेट (bisphosphonates) या विकिरण चिकित्सा(Radiation Therapy ) इसकी रोकथान या उग्रता को कम करने  के लिए काम  में ली जाती है।

(२)खून की कमी (Anemia ) :मायो -लोमा सेल्स या कैंसर की चपेट में आई प्लाज़्मा सेल्स की संख्या के बे -तहाशा बढ़ते चले जाने से इस रोग में स्वस्थ प्लाज़्मा सेल्स (जो वाइट ब्लड सेल्स की ही एक किस्म होतीं हैं )के साथ -साथ ,रेडब्लड सेल्स और प्लेटलेट्स की संख्या भी कम होती जाती है। यही वजह है के रोग के पुख्ता हो चुके मामलों में ६० फीसद तक मामलों में खून की कमी हो जाती है।

(३)गुर्दे अपनी पूरी क्षमता  से काम नहीं करते (Kidney Failure ):क्योंकि मायलोमा ग्रस्त व्यक्ति के मामलों में स्वस्थ  प्लाज़्मा सामान्य  प्रोटीनों के स्थान पर एब्नॉर्मल प्रोटीन (पैरा -प्रोटीन )और M-प्रोटीन बनाने लगतीं हैं साथ ही खून  में  कैल्शियम का स्तर बढ़ता जाता है इसलिए गुर्दों का खून को निथारते रहने फ़िल्टर करते रहने का काम बढ़ जाता है।यह काम अब न तो पूरा हो पाता न ठीक से ही होता है इसलिए पेशाब भी कम बनने लगता है ।सामन्य से कम आने लगता है। हेजिटेशन टाइम  भी बढ़ता है।

(४) क्योंकि मायो -लोमा मरीज़ के मामलों में रोगरोधी तंत्र के मुस्तैद सिपाहियों - वाइट ब्लड सेल्स- की संख्या भी कम हो जाती है इसीलिए बारहा होते रहने वाले इंफेक्शन (संक्रमण )मरीज़ का पिंड नहीं छोड़ते ,घेरे ही रहते हैं जब तब। क्योंकि इस रोग में एब्नॉर्मल प्रोटीनें (या एंटीबॉडीज़ )सामान्य रोगरोधी एंटीबॉडीज़ से ज्यादा हो जाती है इसलिए हमारा इम्यून सिस्टम ही कमज़ोर हो जाता है कम्प्रोमाइज़्ड इम्यून सिस्टम कहलाने लगता है।

अभिनव दवाएं ,इन दवाओं की किस्में ,जीनोम -चिकित्सा ,कस्टमाइज़्ड ट्रीटमेंट की और ले जाने में आगे बढ़ रहीं हैं उम्मीद की जा सकती है मायो -लोमा का पेचीला -पन कमतर होता जाएगा।

शीर्षक :मायलोमा इलाज़ में पेचीला -पन   (Complications in Mayoloma Treatments )

सन्दर्भ -सामिग्री :

(१)https://www.themmrf.org/multiple-myeloma/multiple-myeloma-complications/

कैसे होता है मायोलोमा का रोग निदान (Diagonosis )?

कैसे होता है मायोलोमा का रोग निदान (Diagonosis )?

(१ ) रक्त के कई परीक्षण किये जाते है जिनसे कमप्लीट ब्लड काउंट के अलावा खून में केल्सियम ,एल्ब्युमिन तथा कुल प्रोटीन की मात्रा का पता लगाया जाता है। (http://www.mayoclinic.org/tests-procedures/complete-blood-count/home/ovc-20257165)

(२ ) कुछ ख़ास प्रोटीनों (एंटीबॉडीज़ या प्रतिपिंडों )का पता लगाने के लिए रक्त के साथ -साथ पेशाब की भी जांच की जाती है। 

(३)रक्त में कैल्शियम की अतिरिक्त मात्रा (hypercalcemia ),खून की कमी (anemia ),गुर्दों के ठीक से काम कर रहें हैं या नहीं ,तथा अस्थि की नुकसानी (bone lesions) का पता लगाने के लिए विशेष जांच की जाती है। 

(४ )अस्थिमज़्ज़ा से एक लम्बी सुईं द्वारा ऊतक  लेकर(Bone Marrow  Biopsy )के अलावा अस्थि की एक्स -रे जांच भी की जाती है। 

(५ )अस्थि को कितनी नुकसानी उठानी  पड़ रही  है इसका ज़ायज़ा लेने के लिए अस्थि -घनत्व का पता लगाने के लिए bone density जांच की जाती है। 

गौर तलब है ,अस्थिमज़्ज़ा  में मौजूद प्लाज़्मा सेल्स हमारे रोगरोधी तंत्र के हाथ  मजबूत करने के लिए प्रतिपिंड तैयार करती हैं। मायो -लोमा लिम्फोमा और ल्युकेमिआ की तरह एक प्रकार का रक्त कैंसर ही होता है जो इन प्लाज़्मा कोशिकाओं को असरग्रस्त करता है। असरग्रस्त करके मुर्दार बनाने की जी तोड़ कोशिश करता है। फलत : ये प्लाज़्मा कोशिकायें असामान्य व्यवहार करते हुए अस्थि के बाहर एक कैंसर गांठ(malignant tumor ) बनाने लगतीं हैं .ऐसे में अस्थियां न सिर्फ कमज़ोर पड़  जाती हैं ,अस्थिमज़्ज़ा सामान्य रक्तकोशिकाएँ (स्वस्थ सामान्य प्लाज़्मा सेल्स ,रेडब्लड सेल्स तथा प्लेटलेट्स )भी तैयार नहीं कर पाती हैं । नतीजतन खून की कमी होने लगती है। गुर्दे असरग्रस्त हो सकते हैं क्योंकि असरग्रस्त प्लाज़्मा कोशिकाएं रोगरोधी प्रोटीनों के  स्थान पर अ -वांछित पैरा -प्रोटीन (एब्नॉर्मल एंटीबॉडी )बनाने लगतीं हैं. 

साफ़ -साफ़ इस कैंसर के कारणों का कोई सुनिश्चित कारण ज्ञात नहीं हो सका है जिसे "प्लाज़्मा सेल मायो -लोमा "या 'kahler's disease' भी  कह दिया जाता है मात्र कयास लगाए गए  हैं ,ये कुछ ख़ास किस्म की चिकित्साओं का परिणाम भी हो सकता है। 
संदर्भ -सामिग्री :http://www.prokerala.com/health/diseases/cancer/myeloma.htm  

क्या हैं प्लाज़्मा सेल कैंसर 'माये -लोमा' के लक्षण ?

क्या हैं प्लाज़्मा सेल कैंसर 'माये -लोमा' के लक्षण ?

माये -लोमा बिना लक्षणों के भी बना रह सकता है और फिर एक दिन अचानक रूटीन रक्त जांच के दौरान आपका डॉ. आप से कहे आपको माये -लोमा है। कुछ अन्य लोगों में इस रोग का पता तभी चलता है जब लक्षणों के उग्र रूप धर लेने पर उन्हें अस्पताल में इलाज़ के लिए दाखिल होना पड़े और तब अन्यान्य परीक्षण रोगनिदान प्रस्तुत करें पुख्ता करें। लक्षण अनेक हैं जिनमें से कुछ इस प्रकार हो सकते हैं :

(१) अस्थियों का विनष्ट  होना ,हानि पहुंचना हड्डियों को बिना किसी ख़ास वजह के फ्रेक्चर हो जाना अस्थियों का ,दर्द होना हड्डियों में खासकर रीढ़ और छाती की अस्थियों में ,छीजना कमज़ोर पड़ना ,रक्त में कैल्शियम का स्तर बढ़ जाना।रीढ़ पर दवाब महसूस करना  (spinal compression ),स्नायुविक परेशानियां (नर्व -प्रॉब्लम्स )से दो चार होना। 

(२) हीमोग्राम लेने पर (रक्त की पूर्ण जांच के बाद पता चले )रक्त में लाल रुधिर कण या लाल रुधिर कोशिकाओं की संख्या कमतर रह गई है सामन्य रेंज से गिरके नीचे आ गई है जिस वजह से ,खून की कमी (anemia)होने से जल्दी ही बेहद की थकान होने लगे  ।जल्दी -जल्दी  तरह तरह के संक्रमण (infections )का सामना करना पड़े। 
(३)रक्त और पेशाब की जांच के दौरान उनमें असामान्य प्रतिपिंड (प्रोटीनों की  एब्नॉर्मल किस्म पैरा -प्रोटीनें मिलें। जिनकी वजह से गुर्दे ठीक से काम न करें (अब गुर्दे तो सफाई कर्मचारी है शरीर के )इनमें आई खराबी रंग दिखाती है अपना। खून की श्यानता बढ़ जाए (Hyperviscosity ),थक्के बन ने लगें (Bood Clotting )खून के। 

(४ )भूख मर जाए ,खुराख ही कम हो जाए ,कुछ खाने का मन ही न हो। मलत्याग की आदतों में बदलाव मुखर होवें।  

(५ )कब्ज़ रहने लगे 

(६ )मिचली आये ,जी मिचलाए (Nausea )

(७ )वजन गिरे ,कम रहे बढ़ाने पर भी न बढे 

(८ )सम्भ्रम (Mental Fogginess or Confusion )आ घेरे। 
(९) बारहा (बार -बार ,बात बे -बात )कोई न कोई संक्रमण (Infection )आ घेरे ,चीज़ों का ज़ायज़ा लेने संज्ञान लेने में दिक्कत आने लगे। दिमाग ठीक से काम न करे ,भुलक्क्ड़ी बनी रहे ,चीज़ों की तस्वीर साफ़ न हो। 
(१० )बेहद की प्यास लगना 
(११ )सुन्नी(Numbness in legs ) मेहसूस  करना 
ख़ास कर पैरों का सुन्न पड़ जाना । बर्निंग ,टिंगलिंग, होना ,पिन की सी चुभन का चुभन का जलन का महसूस होना टांगों में। 
नंबनेस शरीर के एक ही पासे (पार्श्व या साइड में )एकल स्नायु के गिर्द और साथ -साथ या फिर दोनों पासों में भी महसूस हो सकती है। 
लक्षणों के बने रहने पर इलाज़ और पुख्ता जांच के लिए चिकित्सक से समय लीजिये ताकि समय रहते रोगनिदान और इलाज़ हो सके। 

सन्दर्भ -सामिग्री :

(१ )http://www.mayoclinic.org/diseases-conditions/multiple-myeloma/symptoms-causes/dxc-20342833

( २ )                   http://www.mayoclinic.org/symptoms/numbness/basics/definiti       on/sym-20050938 

क्या होता है प्लाज़्मा कोशिकाओं और इम्यूनो -ग्लोब्युलिनों को माये -लोमा में ?

अब तक हमने पढ़ा कि मायलोमा प्लाज़्मा कोशिकाओं का कैंसर होता है जो बोनमैरो (अस्थि मज़्ज़ा) में पायी जाती हैं। और  यह भी कि बोनमैरो एक स्पंजी पदार्थ होता है हमारी हड्डियों के अंदरूनी केंद्रीय भाग में। हिप ,ब्रेस्ट ,हाथ -पैरों की हड्डियां ,पसलियां और रीढ़ -हमारी वे मुख्य अस्थियां हैं जहां अस्थि -मज़्ज़ा प्लाज़्मा कोशिकाएं खासी संख्या में मौजूद रहती  हैं ।

आइये अब देखते हैं ,बोनमैरो और मास्टर सेल्स (स्टेम सेल्स या कलम कोशिकाओं )का परस्पर क्या सम्बन्ध रहता है?

गर्भस्थ -भ्रूण जब बा -मुश्किल पंद्रह दिन का होता है तब वह इन मास्टर सेल्स का ही जमघट होता है जो इस समय अवधि में सब अन-डिफ्रेंशियेटिड होने के कारण इस चरण में यकसां ही प्रतीत होतीं हैं लेकिन ये एक ख़ास सॉफ्टवेयर लिए रहतीं हैं जो ये तय करता है इनमें से किसको क्या अंग शरीर का रचना है।

बोनमैरो ही इनअपरिपक्व  सेल्स का रचनाकार होता है जनक या सृष्टा होता है जो आगे चलकर तीन किस्म की कोशिकाएं तैयार करतीं हैं :

(१)लाल रुधिर कणिकाएं (या कोशाएं )जो तमाम कोशाओं को आक्सीजन पहुंचाने वाले वाहन का काम करतीं हैं।

(२ )प्लेटलेट जो चमड़ी के कट -फट जाने पर रक्त बहते रहने से रोकतीं हैं थक्का बनाने का महत्वपूर्ण काम करती हैं।

(३)श्वेत रुधितर कणिकाएं (या कोशिकाओं )का काम किसी भी प्रकार के आक्रान्ता रोगलकारकों से पैदा संक्रमण (Infection caused by invader pathogens )से मोर्चा लेना होता है।

प्लाज़्मा  कोशिकाएं इन्हीं की एक ख़ास किस्म होतीं हैं जो हमारे रोगरोधी तंत्र (Immune system )के प्रहरी सिपाही हैं। 

जैसा हम पिछले आलेख में जान समझ सके हैं मायेलोमा इन्हीं प्लाज़्मा कोशिकाओं को  असरग्रस्त करके नाकारा बना देता है। प्लाज़्मा कोशिकाएं इम्म्यूनो -ग्लोब्युलिन तैयार करतीं हैं जो प्रतिपिंड होते हैं। रक्त संचरण में शामिल होकर यही एंटीबाडीज़ आतताई विषाणुओं और जीवाणुओं पर धावा बोल देती  हैं।किसी भी प्रकार के संक्रमण (Infection )की स्थिति में बोनमैरो ज्यादा प्लाज़्मा कोशिकाएं  बनाने लगती है।अब सामान्य से ज्यादा इम्युनोग्लोबुलिन तैयार होने लगता है, ताकि इंफेक्शन के कारकों से ठीक निपटा जा सके।
प्लाज़्मा कोशिकाओं द्वारा तैयार किया गया इम्म्यूनोग्लोबुलिं प्रोटीनों का बना होता है। ये प्रोटीनें परस्पर गुथी रहती हैं और एक श्रृंखला या जंजीर (chain )बनाती हैं। बड़ी या छोटी। इनमें बड़ी जंजीरों को हेवी तथा छोटी को लाइट कह दिया जाता है।

बड़ी जंजीरे पांच किस्म की होती है जैसा आप गत  आलेख में पढ़ चुके हैं जिन्हें क्रमश :इम्यूनो -ग्लोब्युलिन G,A,D,E तथा IgM कहा जाता है यहां Ig इम्यूनो -ग्लोब्युलिन के लिए प्रयुक्त हुआ है। G,A,D,E तथा M जिसकी किस्में हैं।

लाइट चेन दो किस्म  की होती हैं जिन्हें कप्पा और लेम्ब्डा (लैम्डा )कहा जाता है।

हरेक इम्यूनो -ग्लोब्युलिन दो हेवी तथा दो लाइट चेनों का संयुक्तरूप  होतीं हैं।

क्या होता है प्लाज़्मा कोशिकाओं और इम्यूनो -ग्लोब्युलिनों को माये -लोमा में ?

सामन्य (रोग मुक्त अवस्था )में नै प्लाज़्मा कोशिकाएं नियंत्रित एवं संयत तरीके से टूट -फुट चुकी मृतप्राय प्लाज़्मा कोशिकाओं का स्थान ले लेती हैं। लेकिन माये -लोमा की चपेट में आने पर प्लाज़्मा कोशिकाओं पर से  नियंत्रण का तंत्र ढह जाने से कैंसर ग्रस्त (माये -लोमा सेल्स )प्लाज़्मा कोशिकाएं बे -हिसाब बढ़ने लगतीं हैं।जहां जहां भी प्लाज़्मा कोशिकाएं होती हैं हो सकतीं हैं अब वहां- वहां माये -लोमा सेल्स (कैंसर ग्रस्त प्लाज़्मा सेल्स )पनपने लगती हैं बे -हिसाब।इस प्रकार जहां जहां भी अस्थि मज़्ज़ा है अब वहां वहां माये -लोमा है इसीलिए इसे मल्तिपिल माये -लोमा भी कहा गया है। यानी शरीर के उन उन अंगों को ये असरग्रस्त करता है जहां जहां अस्थि मज़्ज़ज़ा है प्रकारंतर से प्लाज़्मा है। 

इस प्रकार माये -लोमा सेल्स अस्थि मज़्ज़ा को पाट  देती हैं भर देतीं हैं रोगग्रस्त कोशिकाओं से। तथा रेड ब्लड ,वाइट -सेलों  तथा प्लेटलेट के उत्पादन की सामन्य प्रक्रिया को ठप्प करवा देती हैं। इसका नतीजा यह होता है अस्थि ही छीजने लगती है नष्ट भी हो सकती है ,दर्द हो सकता है अस्थियों में ,हड्डियां टूटने भी लगतीं हैं माये -लोमा में। 

लाइटिक लीश्जन (Lytic Lesion) कहा जाता है उस क्षेत्र को जहां की अस्थि विनष्ट हो चुकी है या फिर नष्ट प्राय: अवस्था में आ गई है।

आमतौर पर माये -लोमा कोशिकाएं एक ही प्रकार की इम्यूनो-ग्लोब्युलिन बना पातीं हैं वह भी असामान्य किस्म की नाकारा प्रोटीन ही होती है। इंफेक्शन से नहीं जूझ पातीं हैं ये एब्नॉर्मल इम्युनोग्लोबुलिन अलावा इसके ये सामान्य  किस्म के इम्यूनोग्लोबुलिन   (normal imyunoglobulins )की  मात्रा को भी घटवा देतीं हैं। 
एब्नॉर्मल इम्युनोग्लोबुलिन को पैरा -प्रोटीन या फिर M  प्रोटीन कहा जाता है। 

कुल मिलाकर माये -लोमा  की वजह बनतीं हैं :

(१ )बोनमैरो में माये -लोमा सेलों की दस्तक 

(२)नार्मल (सामन्य किस्म की )रक्त कोशिकाओं की संख्या में गिरावट का दर्ज़ होना। 

(३ )पैराप्रोटीनों का असरग्रस्त व्यक्ति के रक्त और पेशाब में जांच करने पर  मिलना।  

सन्दर्भ -सामिग्री :

http://www.macmillan.org.uk/information-and-support/myeloma/understanding-cancer/what-is-myeloma.html  

चिकित्सा खिड़की से :क्या है मायलोमा (Myeloma )?

चिकित्सा खिड़की से :क्या है मायलोमा (Myeloma )?

मायलोमा एक प्रकार का रक्त कैंसर होता है जो अस्थिमज़्ज़ा में बनी उन कोशिकाओं से पैदा होता है जिन्हें प्लाज़्मा सेल्स कहते हैं। अस्थि -मज़्ज़ा  (Bone marrow )स्पंजी ऊतक होते हैं जो हमारे शरीर की अपेक्षाकृत कुछ बड़े आकार की अस्थियों (हड्डियों )के अंदरूनी भाग में पाये जाते हैं। अस्थि -मज़्ज़ा अनेक प्रकार की कोशिकायें पैदा करती है।

इस स्थिति में जहां -जहां प्लाज़्मा कोशिकायें होतीं हैं वहां -वहां यह कैंसर पैदा हो सकता है। जहां -जहां और जहां कहीं भी छोटी या बड़ी अस्थियों में ,हड्डियों में अस्थि -मज़्ज़ा है जैसे छोटी अस्थियों के मामले में श्रोणि -क्षेत्र (Pelvis ),रीढ़ (spine )और रिब-कैज यानी पसली की हड्डी के चारों ओर का ढांचा पसली -पिजर या पर्शुका पिंजर  जो छाती को सुरक्षा देता है भी इससे नहीं बच पाता है। बड़ी अस्थियों की तो आप बात छोड़िये क्योंकि ये कैंसर शरीर में विभिन्न जगहों ,शरीर के अस्थि -मज़्ज़ा  युक्त विभिन्न अंगों पर हो सकता है इसीलिए इसे अक्सर मल्टीपिल माये -लोमा भी कह दिया जाता है। बल्कि लोकप्रिय यही नाम ज्यादा हो गया है आजकल इस कैंसर का।

इस लाइलाज बनी बीमारी में कैंसर कोशिकायें अस्थि -मज़्ज़ा में एक अड्डा बना लेती हैं जहां ये एकत्रित होतीं जातीं हैं ,द्रुत गति से इनकी संख्या बढ़के स्वस्थ रक्त कोशिकाओं को मात देने लगती है.ये कैंसर -ग्रस्त कोशिकायें सहायक -प्रतिपिंड (रोग जुझारू तंत्र )तो क्या बनाएंगी एब्नॉर्मल प्रोटीन (असामान्य  प्रतिपिंड )तैयार करने लगतीं हैं जो गुर्दों के लिए समस्या बन  गुर्दों में खराबी पैदा कर सकते हैं।

मल्टीपल मायेलोमा के  इलाज़ की हमेशा ज़रूरत नहीं पड़ती है ,लेकिन रोग का  पता चलने पर रक्त तथा अन्य जांच चलती है  तब तक जब तक लक्षण मुखर (प्रकट )न हो जायें। लक्षणों के प्रकटीकरण पर बहुबिध इलाज़ और प्रबंधन मयस्सर रहता है।

क्या होतीं हैं प्लाज़्मा कोशिकायें ?

ये हमारे रुधिर में मौजूद श्वेत रक्त कणिकाओं (वाइट सेल्स )की ही एक किस्म हैं। हमारे रोग रोधी सुरक्षा तंत्र का यह एक ज़रूरी हिस्सा हैं ,चोकीदार हैं ,सुरक्षा प्रहरी हैं । ये कुछ प्रोटीन तैयार करतीं हैं जिन्हें एंटी -बॉडी या प्रति -पिंड कहा जाता है। आकार में इन अपेक्षाकृत बड़े अणुओं को ,इन प्रोटीनों को इम्म्यूनो -ग्लो -बुलिन भी कह दिया  जाता है। जब हमारा शरीर विभिन्न संक्रमणों (Infections )का सामना करता है तब एक सुरक्षा प्रबंध के रूप में उस इंफेक्शन से जूझने मुकाबला करने के लिए प्लाज़्मा कोशिकायें ये एंटीबॉडी बनातीं हैं। आततायी रोगकारकों के खिलाफ यह असलाह है ,गोला -बारूद है। जैसा और जिस किस्म का इंफेक्शन वैसा ही सुरक्षा इंतज़ाम खड़ा कर लेती हैं प्लाज़्मा कोशिकायें। सीमा सुरक्षा बल हैं ये हमारे रोगरोधी तंत्र का। ये चुन -चुन के रोग कारक आतताइयों विषाणु और जीवाणु किस्म- किस्म के पैथोजन्स (वायरस ,बैक्टीरिया आदि )को मारने का माद्दा रखतीं हैं।
इन इम्म्यूनो -ग्लोब्युलिन या प्रोटीनों  की पांच किस्में इस प्रकार हैं :

(१)IgA
(२)IgG
(३ )IgM
(४ )IgD
(५) IgE
मायलोमा ग्रस्त प्रत्येक मरीज़ में मायलोमा  कोषिकायें इन प्रतिपिंडों में से किसी एक की सामान्य प्रति न बनाके असामान्य किस्म बनाने लगतीं हैं। 

You might hear your doctor calls the antibodies proteins ,para -proteins , or a monoclonal spike.

रोग के ज्यादातर मामलों में रक्त की जांच के दौरान ये असामान्य प्रतिपिंड रक्त में पता लग जाते हैं कुछ में इनका पता पेशाब की जांच में चलता है। ये असामान्य प्रतिपिंड रोग से जूझने में नाकामयाब रहते हैं। ये दोषपूर्ण इम्म्यूनोग्लोबुलिन अपने बचावी काम को ठीक से निभा ही नहीं पाते हैं। 

संदर्भ -सामिग्री :
(१)http://www.cancerresearchuk.org/about-cancer/myeloma/about
(२ )http://www.mayoclinic.org/diseases-conditions/multiple-myeloma/home/ovc-20342830

(३ )https://www.reference.com/science/substance-inside-bone-blood-cells-498fd7dc55cb36e6

(४ )https://en.wikipedia.org/wiki/Multiple_myeloma

(५)http://www.macmillan.org.uk/information-and-support/myeloma/understanding-cancer/what-is-myeloma.html

(६ )https://www.medicalnewstoday.com/articles/285666.php

गुरुवार, 28 सितंबर 2017

नाम काम बिहीन पेखत धाम, हूँ नहि जाहि , सरब मान सरबतर मान ,सदैव मानत ताहि। एक मूरति अनेक दरशन ,कीन रूप अनेक , खेल खेल अखेल खेलन ,अंत को फिर एक

मूलमंत्र (गुरु ग्रन्थ साहब का पसारा -भाव -सार अंग्रेजी और हिंदी दोनों मे ):

Mool Mantra :

"Ekonkar ,Satnam ,Karta-purakh ,Nirbhya ,Nirvair ,

Akal -Murat ,Ajuni, Saibhang ,Gur Parsadi "


Creator and His Creation (made up  of the mode of good - ness,mode of action and mode of ignorance,Sat ,Rajo ,Tamo  ) are one -"Ek Ongkaar"

He is outside time and is present now ,was present then ,   and  will be present  in the future .His existence is the only truth . -"Satnam "

He is the creativity which is happening and not the doer .Whatever is happening is happening because of the truth existence (Satnam )-"Karta Purakh "

He is without fear since there is only God and no second.He is revenge less , He is without an enemy .-"Nirbhya Nirvair "

His reflection (Image )does not change with time .He is beyond all species.He is neither male nor female.His image is beyond time and is without a form .-"Akaal Moorat "

He is not one of the species and does not enter the womb of a mother's uterus .He is without a body and hence anatomy and is all pervading present every where now then and in the  future at the same time ."Nanak" is a light of enlighenment  which is shown on to Nanaku -The Body of Gurunanak dev ,who had parents .Nanak has none .-"Ajooni" .

He is self illuminating ,self luminous ,self irradiated ."Sabhang "

The same light "Jot"travels through Nanaku to Guru Govind Singh Ji.

Vaah -Guru !

My Guru is wonderful .

He is the macro -cosmic supra -consciousness. He is everlasting bliss .-"Gur Parsadi "

भाव -सार :

सृष्टि -करता और सृष्टि ,रचता और रचना एक ही है।करता और कृति , रचना उस रचता की ही साकार अभिव्यक्ति है। उसका अस्तित्व काल -बद्ध एक अवधि मात्र ,एक टेन्योर भर नहीं है उसका अस्तित्व ही एक मात्र सत्य है ,सनातन है -आज भी वही सत्य है कल भी वही था और आइंदा भी वही रहेगा। इसीलिए कहा गया वही सत्य है सत्य उसी का नाम है (राम नाम सत्य है -भी इसीलिए कहा  जाता है ).. यह सृष्टि एक प्रतीति है जस्ट  एन  एपीरिएंस। उसका नाम ही एक मात्र सत्य है। 

जो कुछ भी घट रहा है बढ़ रहा है यहां सारा सृजन ,सारी गति ,इलेक्ट्रॉन की धुक -धुक ,परिक्रमा  और नर्तन ,कर्म -शीलता उसी से है। करता नहीं है वह दृष्टा है इस कायनात का। 

नाम काम बिहीन पेखत धाम, हूँ नहि जाहि ,

सरब मान सरबतर मान ,सदैव मानत ताहि। 

एक मूरति अनेक दरशन ,कीन रूप अनेक ,

खेल खेल अखेल खेलन ,अंत को फिर एक। 

उसके अलावा और किसी का अस्तित्व है ही नहीं जो दीखता है उसकी ही माया है। इसी माया की वजह से वह खुद अगोचर बना रहता। 

इसीलिए वह निर्भय-निर्वैर है -

न काहू से दोस्ती ,न काहू से वैर,
कबीरा खड़ा सराय में ,सबकी चाहे खैर। 

उसका कोई रूप नहीं वह अरूप है। निराकार -निरंजन है वह इसीलिए सर्व -व्यापक सब थां पर हैं। उसकी छवि आभा कांति रिफ्लेक्शन या इमेज समय के साथ छीजती बदलती नहीं है। उसका कोई रूप नहीं है और सब रूप उसी के हैं। कोई एक धाम नहीं है और सब धाम उसी के हैं। वह विरोधी गुणों का प्रतिष्ठान है। 

वह किसी माँ के गर्भ में न आता है न जाता है। 

"पुनरपि जन्मम ,पुनरपि मरणम ,

पुनरपि जननी जठरे शरणम् ". 

यह उक्ति  हम प्राणियों के लिए है। वह न कहीं आता है न कहीं  जाता है। वह  दूर से दूर भी है और नेड़े से भी नेड़े निकटतम भी है ,हृद गुफा में वही तो है ,मेरा रीअल सेल्फ। 

वह स्वयं प्रकट  हुआ है ,स्वयं आलोकित है। सर्वत्र उसी का यह आलोक है। स्वयं -भू है वह। 

चेतन (गुर )वही है -परम चेतना भी। वह ऐसा आनंद है (परसादि )जो समय के साथ कम नहीं होता है। व्यष्टि  के स्तर पर वही "आत्मा" है ,समष्टि  के तल पर "परमात्मा"।"मैं" भी वही हूँ "तू" भी वही है। फर्क है तो बस उसके और मेरे (हमारे )परिधानों ,कपड़ों में है। मेरे कपड़े मेरा यह तन है जिसे मैं अपना निजस्वरूप माने बैठा हूँ ,यह अज्ञान मेरे अहंकार से ही आया है। उसके वस्त्र माया है। त्रिगुणात्मक (सतो -रजो -तमो गुणी सृष्टि )है।

माया में प्रतिबिंबित ब्रह्म को  ही ईश्वर कहा गया है। ब्रह्म के भी दो स्वरूप हैं 

(१ )अपर ब्रह्म और :अपर ब्रह्म ही माया में प्रतिबिंबित ब्रह्म होता है 

(२ )परब्रह्म या पारब्रह्म  परमचेतन तत्व है "गुरप्रसादि "का "गुर "
है। परमव्यापक चेतना है। 

विज्ञानी कहते हैं सृष्टि भौतिक तत्वों से बनी है -बिगबेंग प्रसूत ऊर्जा से इसकी निर्मिति हुई है। लेकिन आध्यात्मिक सनातन दृष्टि इसे परम -चेतना "गुर "ही मानती है। 

जयश्रीकृष्ण। 

महाकवि पीपा कहते हैं :

 सगुण  मीठो खांड सो ,निर्गुण कड़वो नीम ,

जाको  गुरु जो परस दे ,ताहि प्रेम सो जीम। 

मानस में तुलसी बाबा कहते हैं :

जाकी रही भावना जैसी ,

प्रभु मूरति देखि तीन तैसी। 

शिवजी पार्वती जी से मानस के ही एक प्रसंग में अपना अनुभव कहते हैं :

उमा कहूँ मैं अनुभव अपना ,

सत हरिभजन जगत सब सपना। 

यानी संसार एक प्रतीति मात्र है सत्य केवल "सतनाम 'ही है। 

सन्दर्भ :https://www.youtube.com/watch?v=fCehIP7AQBI

वाहे गुरु जी का खालसा वह गुरूजी की फतह।  

Reference :

(1)https://www.youtube.com/watch?v=W9Q69tkRRVI

मूलमंत्र (गुरु ग्रन्थ साहब का पसारा -भाव -सार अंग्रेजी और हिंदी दोनों मे ):

मूलमंत्र (गुरु ग्रन्थ साहब का पसारा -भाव -सार अंग्रेजी और हिंदी दोनों मे ):

Mool Mantra :

"Ekonkar ,Satnam ,Karta-purakh ,Nirbhya ,Nirvair ,

Akal -Murat ,Ajuni, Saibhang ,Gur Parsadi "


Creator and His Creation (made up  of the mode of good - ness,mode of action and mode of ignorance,Sat ,Rajo ,Tamo  ) are one -"Ek Ongkaar"

He is outside time and is present now ,was present then ,   and  will be present  in the future .His existence is the only truth . -"Satnam "

He is the creativity which is happening and not the doer .Whatever is happening is happening because of the truth existence (Satnam )-"Karta Purakh "

He is without fear since there is only God and no second.He is revenge less , He is without an enemy .-"Nirbhya Nirvair "

His reflection (Image )does not change with time .He is beyond all species.He is neither male nor female.His image is beyond time and is without a form .-"Akaal Moorat "

He is not one of the species and does not enter the womb of a mother's uterus .He is without a body and hence anatomy and is all pervading present every where now then and in the  future at the same time ."Nanak" is a light of enlighenment  which is shown on to Nanaku -The Body of Gurunanak dev ,who had parents .Nanak has none .-"Ajooni" .

He is self illuminating ,self luminous ,self irradiated ."Sabhang "

The same light "Jot"travels through Nanaku to Guru Govind Singh Ji.

Vaah -Guru !

My Guru is wonderful .

He is the macro -cosmic supra -consciousness. He is everlasting bliss .-"Gur Parsadi "

भाव -सार :

सृष्टि -करता और सृष्टि ,रचता और रचना एक ही है।करता और कृति , रचना उस रचता की ही साकार अभिव्यक्ति है। उसका अस्तित्व काल -बद्ध एक अवधि मात्र ,एक टेन्योर भर नहीं है उसका अस्तित्व ही एक मात्र सत्य है ,सनातन है -आज भी वही सत्य है कल भी वही था और आइंदा भी वही रहेगा। इसीलिए कहा गया वही सत्य है सत्य उसी का नाम है (राम नाम सत्य है -भी इसीलिए कहा  जाता है ).. यह सृष्टि एक प्रतीति है जस्ट  एन  एपीरिएंस। उसका नाम ही एक मात्र सत्य है। 

जो कुछ भी घट रहा है बढ़ रहा है यहां सारा सृजन ,सारी गति ,इलेक्ट्रॉन की धुक -धुक ,परिक्रमा  और नर्तन ,कर्म -शीलता उसी से है। करता नहीं है वह दृष्टा है इस कायनात का। 

नाम काम बिहीन पेखत धाम, हूँ नहि जाहि ,

सरब मान सरबतर मान ,सदैव मानत ताहि। 

एक मूरति अनेक दरशन ,कीन रूप अनेक ,

खेल खेल अखेल खेलन ,अंत को फिर एक। 

उसके अलावा और किसी का अस्तित्व है ही नहीं जो दीखता है उसकी ही माया है। इसी माया की वजह से वह खुद अगोचर बना रहता। 

इसीलिए वह निर्भय-निर्वैर है -

न काहू से दोस्ती ,न काहू से वैर,
कबीरा खड़ा सराय में ,सबकी चाहे खैर। 

उसका कोई रूप नहीं वह अरूप है। निराकार -निरंजन है वह इसीलिए सर्व -व्यापक सब थां पर हैं। उसकी छवि आभा कांति रिफ्लेक्शन या इमेज समय के साथ छीजती बदलती नहीं है। उसका कोई रूप नहीं है और सब रूप उसी के हैं। कोई एक धाम नहीं है और सब धाम उसी के हैं। वह विरोधी गुणों का प्रतिष्ठान है। 

वह किसी माँ के गर्भ में न आता है न जाता है। 

"पुनरपि जन्मम ,पुनरपि मरणम ,

पुनरपि जननी जठरे शरणम् ". 

यह उक्ति  हम प्राणियों के लिए है। वह न कहीं आता है न कहीं  जाता है। वह  दूर से दूर भी है और नेड़े से भी नेड़े निकटतम भी है ,हृद गुफा में वही तो है ,मेरा रीअल सेल्फ। 

वह स्वयं प्रकट  हुआ है ,स्वयं आलोकित है। सर्वत्र उसी का यह आलोक है। स्वयं -भू है वह। 

चेतन (गुर )वही है -परम चेतना भी। वह ऐसा आनंद है (परसादि )जो समय के साथ कम नहीं होता है। व्यष्टि  के स्तर पर वही "आत्मा" है ,समष्टि  के तल पर "परमात्मा"।"मैं" भी वही हूँ "तू" भी वही है। फर्क है तो बस उसके और मेरे (हमारे )परिधानों ,कपड़ों में है। मेरे कपड़े मेरा यह तन है जिसे मैं अपना निजस्वरूप माने बैठा हूँ ,यह अज्ञान मेरे अहंकार से ही आया है। उसके वस्त्र माया है। त्रिगुणात्मक (सतो -रजो -तमो गुणी सृष्टि )है।

माया में प्रतिबिंबित ब्रह्म को  ही ईश्वर कहा गया है। ब्रह्म के भी दो स्वरूप हैं 

(१ )अपर ब्रह्म और :अपर ब्रह्म ही माया में प्रतिबिंबित ब्रह्म होता है 

(२ )परब्रह्म या पारब्रह्म  परमचेतन तत्व है "गुरप्रसादि "का "गुर "
है। परमव्यापक चेतना है। 

विज्ञानी कहते हैं सृष्टि भौतिक तत्वों से बनी है -बिगबेंग प्रसूत ऊर्जा से इसकी निर्मिति हुई है। लेकिन आध्यात्मिक सनातन दृष्टि इसे परम -चेतना "गुर "ही मानती है। 

जयश्रीकृष्ण। 

महाकवि पीपा कहते हैं :

 सगुण  मीठो खांड सो ,निर्गुण कड़वो नीम ,

जाको  गुरु जो परस दे ,ताहि प्रेम सो जीम। 

मानस में तुलसी बाबा कहते हैं :

जाकी रही भावना जैसी ,

प्रभु मूरति देखि तीन तैसी। 

शिवजी पार्वती जी से मानस के ही एक प्रसंग में अपना अनुभव कहते हैं :

उमा कहूँ मैं अनुभव अपना ,

सत हरिभजन जगत सब सपना। 

यानी संसार एक प्रतीति मात्र है सत्य केवल "सतनाम 'ही है। 

सन्दर्भ :https://www.youtube.com/watch?v=fCehIP7AQBI

वाहे गुरु जी का खालसा वह गुरूजी की फतह।  

Reference :

(1)https://www.youtube.com/watch?v=W9Q69tkRRVI

Mool Mantra : "Ekonkar ,Satnam ,Karta-purakh ,Nirbhya ,Nirvair , Akal -Murat ,Ajuni, Saibhang ,Gur Parsadi "

Mool Mantra :

"Ekonkar ,Satnam ,Karta-purakh ,Nirbhya ,Nirvair ,

Akal -Murat ,Ajuni, Saibhang ,Gur Parsadi "


Creator and His Creation (made up  of the mode of good - ness,mode of action and mode of ignorance,Sat ,Rajo ,Tamo  ) are one -"Ek Ongkaar"

He is outside time and is present now ,was present then ,   and  will be present  in the future .His existence is the only truth . -"Satnam "

He is the creativity which is happening and not the doer .Whatever is happening is happening because of the truth existence (Satnam )-"Karta Purakh "

He is without fear since there is only God and no second.He is revenge less , He is without an enemy .-"Nirbhya Nirvair "

His reflection (Image )does not change with time .He is beyond all species.He is neither male nor female.His image is beyond time and is without a form .-"Akaal Moorat "

He is not one of the species and does not enter the womb of a mother's uterus .He is without a body and hence anatomy and is all pervading present every where now then and in the  future at the same time ."Nanak" is a light of enlighenment  which is shown on to Nanaku -The Body of Gurunanak dev ,who had parents .Nanak has none .-"Ajooni" .

He is self illuminating ,self luminous ,self irradiated ."Sabhang "

The same light "Jot"travels through Nanaku to Guru Govind Singh Ji.

Vaah -Guru !

My Guru is wonderful .

He is the macro -cosmic supra -consciousness. He is everlasting bliss .-"Gur Parsadi "

भाव -सार :

सृष्टि -करता और सृष्टि ,रचता और रचना एक ही है।करता और कृति , रचना उस रचता की ही साकार अभिव्यक्ति है। उसका अस्तित्व काल -बद्ध एक अवधि मात्र ,एक टेन्योर भर नहीं है उसका अस्तित्व ही एक मात्र सत्य है ,सनातन है -आज भी वही सत्य है कल भी वही था और आइंदा भी वही रहेगा। इसीलिए कहा गया वही सत्य है सत्य उसी का नाम है (राम नाम सत्य है -भी इसीलिए कहा  जाता है ).. यह सृष्टि एक प्रतीति है जस्ट  एन  एपीरिएंस। उसका नाम ही एक मात्र सत्य है। 

जो कुछ भी घट रहा है बढ़ रहा है यहां सारा सृजन ,सारी गति ,इलेक्ट्रॉन की धुक -धुक ,परिक्रमा  और नर्तन ,कर्म -शीलता उसी से है। करता नहीं है वह दृष्टा है इस कायनात का। 

नाम काम बिहीन पेखत धाम, हूँ नहि जाहि ,

सरब मान सरबतर मान ,सदैव मानत ताहि। 

एक मूरति अनेक दरशन ,कीन रूप अनेक ,

खेल खेल अखेल खेलन ,अंत को फिर एक। 

उसके अलावा और किसी का अस्तित्व है ही नहीं जो दीखता है उसकी ही माया है। इसी माया की वजह से वह खुद अगोचर बना रहता। 

इसीलिए वह निर्भय-निर्वैर है -

न काहू से दोस्ती ,न काहू से वैर,
कबीरा खड़ा सराय में ,सबकी चाहे खैर। 

उसका कोई रूप नहीं वह अरूप है। निराकार -निरंजन है वह इसीलिए सर्व -व्यापक सब थां पर हैं। उसकी छवि आभा कांति रिफ्लेक्शन या इमेज समय के साथ छीजती बदलती नहीं है। उसका कोई रूप नहीं है और सब रूप उसी के हैं। कोई एक धाम नहीं है और सब धाम उसी के हैं। वह विरोधी गुणों का प्रतिष्ठान है। 

वह किसी माँ के गर्भ में न आता है न जाता है। 

"पुनरपि जन्मम ,पुनरपि मरणम ,

पुनरपि जननी जठरे शरणम् ". 

यह उक्ति  हम प्राणियों के लिए है। वह न कहीं आता है न कहीं  जाता है। वह  दूर से दूर भी है और नेड़े से भी नेड़े निकटतम भी है ,हृद गुफा में वही तो है ,मेरा रीअल सेल्फ। 

वह स्वयं प्रकट  हुआ है ,स्वयं आलोकित है। सर्वत्र उसी का यह आलोक है। स्वयं -भू है वह। 

चेतन (गुर )वही है -परम चेतना भी। वह ऐसा आनंद है (परसादि )जो समय के साथ कम नहीं होता है। व्यष्टि  के स्तर पर वही "आत्मा" है ,समष्टि  के तल पर "परमात्मा"।"मैं" भी वही हूँ "तू" भी वही है। फर्क है तो बस उसके और मेरे (हमारे )परिधानों ,कपड़ों में है। मेरे कपड़े मेरा यह तन है जिसे मैं अपना निजस्वरूप माने बैठा हूँ ,यह अज्ञान मेरे अहंकार से ही आया है। उसके वस्त्र माया है। त्रिगुणात्मक (सतो -रजो -तमो गुणी सृष्टि )है। 

जयश्रीकृष्ण !वाहे गुरु जी का खालसा वह गुरूजी की फतह।  

Reference :

(1)https://www.youtube.com/watch?v=W9Q69tkRRVI

बुधवार, 27 सितंबर 2017

चिकित्सा खिड़की से :क्या है मायलोमा (Myeloma )?

चिकित्सा खिड़की से :क्या है मायलोमा (Myeloma )?

मायलोमा एक प्रकार का कैंसर होता है जो अस्थिमज़्ज़ा में बनी उन कोशिकाओं से पैदा होता है जिन्हें प्लाज़्मा सेल्स कहते हैं। अस्थि -मज़्ज़ा  (Bone marrow )स्पंजी ऊतक होते हैं जो हमारे शरीर की अपेक्षाकृत कुछ बड़े आकार की सपाट ,चपटी समतल अस्थियों (हड्डियों )यथा कूल्हे या पुठ्ठे यानी हिप्स ,छाती के बीच में लम्बी चपटी हड्डी जिससे पसलियां जुडी रहती हैं यानी  ब्रेस्टबोन,हमारे सिर की अस्थि रचना खोपड़ी या कपाल ,पसलियों ,रीढ़ की हड्डी की गुर्री के एक अंश स्पाइन ,कन्धों की हड्डी ,जांघ की हड्डी  के समीपस्थ सिरों में मौजूद स्पंजी पदार्थ में यानी ऊर्विका में ,ह्युमरस यानी कंधे और कोहनी के बीच बांह के ऊपर की बड़ी हड्डी प्रगंडिका आदि के अंदरूनी भाग में पाये जाते हैं। अस्थि -मज़्ज़ा अनेक प्रकार की कोशिकायें पैदा करती है।अस्थि मज़्ज़ा स्वयं बड़ी अस्थियों के केंद्र में मौजूद ऊतक ही तो होते हैं। यही वो जगह है जहां नै रक्त कोशिकायें बनती हैं।

इस स्थिति में जहां -जहां प्लाज़्मा कोशिकायें होतीं हैं वहां -वहां यह कैंसर पैदा हो सकता है। जहां -जहां और जहां कहीं भी छोटी या बड़ी अस्थियों में ,हड्डियों में अस्थि -मज़्ज़ा है जैसे छोटी अस्थियों के मामले में श्रोणि -क्षेत्र (Pelvis ),रीढ़ (spine )और रिब-कैज यानी पसली की हड्डी के चारों ओर का ढांचा पसली -पिजर या पर्शुका पिंजर  जो छाती को सुरक्षा देता है भी इससे नहीं बच पाता है। बड़ी अस्थियों की तो आप बात छोड़िये क्योंकि ये कैंसर शरीर में विभिन्न जगहों ,शरीर के अस्थि -मज़्ज़ा  युक्त विभिन्न अंगों पर हो सकता है इसीलिए इसे अक्सर मल्टीपिल माये -लोमा भी कह दिया जाता है। बल्कि लोकप्रिय यही नाम ज्यादा हो गया है आजकल इस कैंसर का।

इस लाइलाज बनी बीमारी में कैंसर कोशिकायें अस्थि -मज़्ज़ा में एक अड्डा बना लेती हैं जहां ये एकत्रित होतीं जातीं हैं ,द्रुत गति से इनकी संख्या बढ़के स्वस्थ रक्त कोशिकाओं को मात देने लगती है.ये कैंसर -ग्रस्त कोशिकायें सहायक -प्रतिपिंड (रोग जुझारू तंत्र )तो क्या बनाएंगी एब्नॉर्मल प्रोटीन (असामान्य  प्रतिपिंड )तैयार करने लगतीं हैं जो गुर्दों के लिए समस्या बन  गुर्दों में खराबी पैदा कर सकते हैं।

मल्टीपल मायेलोमा के  इलाज़ की हमेशा ज़रूरत नहीं पड़ती है ,लेकिन रोग का  पता चलने पर रक्त तथा अन्य जांच चलती है  तब तक जब तक लक्षण मुखर (प्रकट )न हो जायें। लक्षणों के प्रकटीकरण पर बहुबिध इलाज़ और प्रबंधन मयस्सर रहता है।

क्या होतीं हैं प्लाज़्मा कोशिकायें ?

ये हमारे रुधिर में मौजूद श्वेत रक्त कणिकाओं (वाइट सेल्स )की ही एक किस्म हैं। हमारे रोग रोधी सुरक्षा तंत्र का यह एक ज़रूरी हिस्सा हैं ,चोकीदार हैं ,सुरक्षा प्रहरी हैं । ये कुछ प्रोटीन तैयार करतीं हैं जिन्हें एंटी -बॉडी या प्रति -पिंड कहा जाता है। आकार में इन अपेक्षाकृत बड़े अणुओं को ,इन प्रोटीनों को इम्म्यूनो -ग्लो -बुलिन भी कह दिया  जाता है। जब हमारा शरीर विभिन्न संक्रमणों (Infections )का सामना करता है तब एक सुरक्षा प्रबंध के रूप में उस इंफेक्शन से जूझने मुकाबला करने के लिए प्लाज़्मा कोशिकायें ये एंटीबॉडी बनातीं हैं। आततायी रोगकारकों के खिलाफ यह असलाह है ,गोला -बारूद है। जैसा और जिस किस्म का इंफेक्शन वैसा ही सुरक्षा इंतज़ाम खड़ा कर लेती हैं प्लाज़्मा कोशिकायें। सीमा सुरक्षा बल हैं ये हमारे रोगरोधी तंत्र का। ये चुन -चुन के रोग कारक आतताइयों विषाणु और जीवाणु किस्म- किस्म के पैथोजन्स (वायरस ,बैक्टीरिया आदि )को मारने का माद्दा रखतीं हैं।
इन इम्म्यूनो -ग्लोब्युलिन या प्रोटीनों  की पांच किस्में इस प्रकार हैं :

(१)IgA
(२)IgG
(३ )IgM
(४ )IgD
(५) IgE
मायलोमा ग्रस्त प्रत्येक मरीज़ में मायलोमा  कोषिकायें इन प्रतिपिंडों में से किसी एक की सामान्य प्रति न बनाके असामान्य किस्म बनाने लगतीं हैं। 

You might hear your doctor calls the antibodies proteins ,para -proteins , or a monoclonal spike.

रोग के ज्यादातर मामलों में रक्त की जांच के दौरान ये असामान्य प्रतिपिंड रक्त में पता लग जाते हैं कुछ में इनका पता पेशाब की जांच में चलता है। ये असामान्य प्रतिपिंड रोग से जूझने में नाकामयाब रहते हैं। ये दोषपूर्ण इम्म्यूनोग्लोबुलिन अपने बचावी काम को ठीक से निभा ही नहीं पाते हैं। 

संदर्भ -सामिग्री :
(१)http://www.cancerresearchuk.org/about-cancer/myeloma/about
(२ )http://www.mayoclinic.org/diseases-conditions/multiple-myeloma/home/ovc-20342830

(३ )https://www.reference.com/science/substance-inside-bone-blood-cells-498fd7dc55cb36e6

(४ )https://en.wikipedia.org/wiki/Multiple_myeloma

(५)http://www.macmillan.org.uk/information-and-support/myeloma/understanding-cancer/what-is-myeloma.html

(६ )https://www.medicalnewstoday.com/articles/285666.php


सोमवार, 25 सितंबर 2017

बीएचयू में षडयंत्रकारी तत्वों का जमघट

बीएचयू में षडयंत्रकारी तत्वों का जमघट

प्रधानमन्त्री अभी हवाईजहाज में बैठे ही थे ,मार्क्सवाद के बौद्धिक गुलामों में जिनके सरदार येचारी सीताराम बने हुए हैं ,सपाई के छटे हुए षड्यंत्रकारी तत्व ,पाकिस्तान विचार के स्थानीय जेहादी तत्व जिनमें अपने को सबसे पहले मुसलमान मानने शान से बतलाने वाले लोग ,ममताई लफंडर आईएसआई के स्लीपर सेल के लोग,हाय ये तो कुछ भी नहीं हुआ कह के  हाथ मलके चुप नहीं बैठे उन्होंने अपनी लीला दिखला दी।

 मुद्दा था एक केम्पस छात्रा  के  साथ कथित बदसुलूकी दूसरी का अपने को खुद ही घायल कर लेना और तीसरी का सर मुंडा लेना। प्रधानमन्त्री कि यद्यपि यह कांस्टीटूएंसी है लेकिन प्रधानमन्त्री का काम गली -गली घूमके इन षड्यंत्रों को सूघ लेना नहीं होता है वह आये और अपना सकारात्मक काम अंजाम देकर चले गए।

योगी आदित्य नाथ खुद क्योंकि षड्यंत्रकारी नहीं रहे हैं मुलायमतत्वों की तरह ,वह अंदर खाने पल रही इस साजिश की टोह नहीं ले सके। यूनिवर्सिटी के वाइसचांसलर ने घटना पर खेद व्यक्त करते हुए कहा है जो हुआ वह खेद जनक है लेकिन मुझे घटना को ठीक से समझने तो दो।वह भी हतप्रभ हैं। 

अजीब बात है हालांकि शरदयादव के लोग  वहां इम्प्लांट नहीं किये गए थे लेकिन ये ज़नाब घटना की निंदा करने वालों में सबसे आगे रहे।

अब ये भारतधर्मी समाज का काम है वह आमजान को बतलाये बीएचयू को जेएनयू में बदलने की साजिश करने वाले कौन -कौन से कन्हैया तत्व हैं जो मौके का फायदा उठा रहे हैं। बीएचयू एक बड़ा कैंपस है यहां हैदराबादी ओवेसी -पाकिस्तान सोच के लोग भी पढ़ने की आड़ में घुस आये हैं ,सीधे -सीधे पाकिस्तान सोच के लोग भी ,ममता की नज़र पूजा - मूर्ती विसर्जन से पहले ऐसे दंगे करवाने की बनी हुई है ताकि अपनी सोच को वह ठीक ठहरा सकें। इन्होने हाईकोर्ट के आदेश को नहीं माना सुप्रीम कोर्ट इसलिए नहीं गईं कि और फ़ज़ीहत होगी लिहाज़ा अपनी सोच को जायज सिद्ध करने करवाने के लिए वह हिन्दुस्तान में जगह -जगह दंगे प्रायोजित करवाने की ताक  में हैं उनके लोग भी बीएचयू पहुंचे पहुंचाए गए हैं।  यकीन मानिये बहुत जल्दी इन की बखिया उधड़ेगी लेकिन भारतधर्मी समाज को इस वेला देश- विरोधी  पाकिस्तान और आईएसआई समर्थक सोच के लोगों पर बराबर निगाह जमाये रखनी है। जैश्रीकृष्णा।  

कौन सी बातें महाधमनी वाल्व अवरोध या संकरेपन की बीमारी एओटिकवाल्व स्टेनोसिस के होने की जोखिम को ,संभावना को पैदा करती हैं,बढ़ा देती है :

कौन सी बातें महाधमनी वाल्व अवरोध या संकरेपन की बीमारी एओटिकवाल्व स्टेनोसिस   के होने की जोखिम को ,संभावना को पैदा करती हैं,बढ़ा देती है  :

(१) बढ़ती उम्र खासकर सत्तर -अस्सी के पेटे  में आये लोगों के लिए जोखिम बढ़ जाता है। 

(२ )जन्मजात हृदय से ताल्लुक  रखने वाली चिकित्सीय स्थितियां (विकृतियां जैसे वाल्वों की संरचना सामान्य से अलग होना ट्राइकस्पिड वाल्व एओटिक का दो पल्ले या लीफलेट्स लिए बायकस्पिड रह जाना  )

(३)ऐसे संक्रमणों का पूर्ववृतान्त (हिस्ट्री )जो हृदय को असरग्रस्त करने का माद्दा या क्षमता रखते हों। 

(४)हृदय तथा रक्तवाहिकाओं से संबंधित (कार्डिओ -वसक्यलर)जोखिम को बढ़ाने वाली कंडीशनों जीवनशैली रोग यथा मधुमेह ,खून में घुली हुई चर्बी की  ज्यादा मात्रा (हाई -कॉलस्ट्रॉल )तथा हाई -ब्लड प्रेशर का मौजूद होना  

(५ )दीर्घावधि चले आये पुराने (लाइलाज )किडनी रोग का रहना ,रहे आना 

(६ )छाती विकिरण चिकित्सा का पूर्व -वृत्तांत 

सन्दर्भ -सामिग्री :http://www.mayoclinic.org/diseases-conditions/aortic-stenosis/symptoms-causes/dxc-20344145


भौतिक -विज्ञानों के झरोखे से

भौतिक -विज्ञानों के झरोखे से :क्या है उष्णकटिबंधी चक्रवातीय तूफानों की एक भयावह किस्म- "हरिकैन" (Hurricane )?कैसे होता है इनका नामकरण संस्कार ?

आम फेहम साधरण -जन की भाषा में कहें तो हरिकेन एक भयावह अंधड़ -तूफ़ान ही है  जिसे भूगोल -विज्ञान के माहिर उष्णकटिबंधी चक्रवात ही कहते हैं। हरिकेन अक्सर उष्णकटिबंधी और उप -उष्णकटि -बंधी जलराशि के ऊपर ही समुन्द्र के ऊपर उठते- बनते- पैदा होते हैं। इनकी फ़िज़िक्स के बारे में बात फिर कभी करेंगे।पूरा भौतिकी शास्त्र है इनका।

माहिरों के अनुसार जब किसी तूफ़ान की घूर्णन -गति  (Storm's Maximum Sustained Wind )प्रतिघंटा चौहत्तर मील को न सिर्फ छूले बल्कि लगातार उस अवधि में कायम भी रहे तब उसे हरिकेन का दर्ज़ा मिल जाता है। चीते से  ज्यादा तेज़ है ये बवंडर सी बलखाती नर्तनशील चाल जो इमारतों और वृक्षों को जड़ से उखाड़ फेंकने की ताकत रखती है।

सागरों के उष्ण जल के ऊपर बनते - पैदा होते ये तूफ़ान। उष्ण कटिबंधी इलाके इनके प्राकृत आवास कहे जा सकते हैं। कभी कभार तटीय इलाके का भू -क्षेत्र भी इनकी चपेट में आता है। बस देखते ही देखते जैसे समुन्दर विशाल जलराशि की एक दीवार बन भूक्षेत्र की ओर  दौड़ पड़ता है। इसे स्टॉर्म सर्ज (Storm Surge )कहा जाता है। वर्तमान में प्युटो- रीको (उत्तरी अमरीका के नियंत्रण में एक द्वीप )ये तबाही झेल रहा है। बस जैसे एक जल प्रलय होने को है तटबंध टूटने को हैं , ऐसी प्रतीति कराती है यह कुदरत की विनाश  लीला।

जैसे रिख्टर -पैमाने पे भूकंप की शक्ति का आकलन प्रसूत ऊर्जा के आधार और उससे होने वाली तबाही ,उस स्थान की भू -स्थल आकृति जिसका ज़ायज़ा दिलवाती चलती है , आकलन करती है  इस तबाही का , वैसे ही यहां इन भयावह समुदी तूफानों की शक्ति और विनाश लीला का आकलन (Saffir Simpson Wind Scale )सफ़ीर सिम्प्सन पवन पैमाने पर किया जाता है। जैसे जलजले से निसृत ऊर्जा से होने वाली तबाही का आकलन (१-१० )अंकों तक रिख्टर पैमाने तथा १ से लेकर १२ तक मरकेली पैमाने पर किया जाता है वैसे ही यहां इन भयावह चक्रवातों के मामले में १ से लेकर पांच अंक   रखे गए हैं जिसे अंकीय रेटिंग कह सकते हैं।इनका शक्तिमान कह सकते हैं।

कम -दाब वाला एक  मौसमी घूर्णनतंत्र होता  है उष्ण कटिबंधी चक्रवात। इसके तहत संघठित गर्जनमेघ (organised thunderstorms )आते हैं। लेकिन अलग -अलग पवनराशियों को अलग अलग रखने वाला कोई क्षेत्र या सीमा (Fronts )यहां नहीं होती है।

सन्दर्भ के लिए देखें सेतु :(https://oceanservice.noaa.gov/facts/hurricane.html)

राष्ट्रीय समुद्री (सागरीय )एवं वायुमंडलीय प्रशासन तथा संबद्ध राष्ट्रीय हरिकेन केंद्र के अनुसार इन विनाशकारी तूफानों का प्रसव एक जून से लेकर ३० नवंबर तक आधिकारिक तौर पर आकलित ,अनुमित ,किया गया है दीगर है कि इस अवधि के  बाहर -भीतर भी ये तूफ़ान उठ सकते हैं। कुदरत के खेल का केवल अनुमान ही लगाया जा सकता है।निश्चय  कुछ नहीं।

हरिकेन का नामकरण और पुरोहिताई  :विश्व मौसम संगठन करता यह काम। इस पर नेशनल हरिकेन सेंटर का कोई नियंत्रण नहीं रहता है। पूर्व में प्रशांत और अब अंधमहासागरीय क्षेत्र में भी पैदा होने वाले भयावह तूफानों के लिए कुछ नर और मादा ,स्त्रियों और मर्दों के नाम छः साल के एक आवधिक चक्र के बाद बारी -बारी  से रखे जाते हैं।

किसी कहतें हैं चक्रवात ?

यह एक लार्ज स्केल बड़े पैमाने का आंधी -तूफ़ान तंत्र(स्टाम ) होता है जहां पवनें एक केंद्र के गिर्द उत्तरी गोलार्द्ध में वामावर्त दिशा में यानी घड़ी  की सुइयों के विपरीत दिशा में   घूर्णन करती हैं तथा दक्षिणी गोल में दक्षिणावर्त। 
आम भाषा में इसे ही चक्रवात या बवंडर (गोल -गोल वृताकार घूमती तेज़ हवा वाली आंधी हवा का बिगूला कह दिया जाता है। यह बहुत खराब मौसम का संकेत करता है जिसमें बेहद की  वर्षा या तेज़ आंधी का भी इशारा रहता है।  

बहुत तेज़ बर्फीला तूफ़ान "Blizzard "कहा जाता है। टाइफून (Typhoon )उष्ण - कटिबंधी प्रचंड विध्वंसकारी  अंधड़ तूफ़ान (Violent Tropical Storm )को कहा जाता है ये आमतौर पर बेहद की शक्ति और ऊर्जा लिए अपनी विनाश लीला का क्षेत्र पश्चिमी प्रशांत तथा भारतीय समुन्द्रों (Indian Oceans)को बनाते हैं। 

हरिकेन एक ऐसा उग्र -अंधड़ तूफ़ान है जो अपने साथ मूसलाधार बारिश तथा अतिवेगवान पवनों से मार करता है। इसमें पवनों की चाल ११९ किलोमीटर प्रतिघंटे के पार चली जाती है। Beaufort Scale पर इसका ताकत और परिमान १२ या इससे और भी अधिक आंका जाता था। 

वर्तमान में जिस हरिकेन ने प्युर्तो-रीको (उत्तरी अमरीकी द्वीप )को अपना निशाना बनाया है उसे "सफ़ीर सिम्प्सन स्केल" पर विनाशलीला के तहत ३. ० आंका गया है। 

टारनेडो :यह भी एक प्रकार का घूर्णनशील उग्र बवंडर होता है। इसकी आकृति फनेल आकृति के बादल जैसी, हाथी की सूंड सी रहती है जिसमे भयंकर घूर्णन करती हवाएं चक्कर काटती हुई आगे बढ़ती है। गनीमत है इनका मार्ग स्थल के ओर बढ़ते हुए संकरा ही रहता है एक सीमित क्षेत्र ही इस column of swirling wind से पैदा  तबाही  का  साक्षी बनता है। एक प्रचंड तूफानी तंत्र इसकी कोख में रहता है जिसके साये में जिसके तले (नीचे )यह आगे बढ़ता रहता है। 

यह हवा या पानी का ऐसा बवंडर (भंवर )होता है ,वातावर्त या जलावर्न होता है जो चपेट में आई चीज़ों को अपने केंद्र की और खींच -घसीट के ले आता है। और मज़े से उसे लिए आगे बढ़ जाता है। चंद मिनिटों की अवधि में केहर ढ़ा देता है. इसका वाटेक्स (Vortex )घूर्णन वायु या जल राशि रहती है यही वायु या जल की  घूर्णन शील भंवर - राशि तबाही मचाती है। तरह मिनिट से पहले इनकी चेतावनी प्रसारित नहीं की जा सकती। तबाही मचाके ये चलते बनते हैं चंद सेकिंड  से लेकर कई घंटा तक हो सकती है इनकी आक्रामक मुद्रा  इनकी यथा समय भविष्य वाणी का समय केवल तरह  मिनिट रहता है। इससे पहले कोई अनुमान नहीं लगाया जा सकता। 
देखें सेतु :
https://www.youtube.com/watch?v=wlwyA-5iafg

टाइडल वेव या सुनामी (बंदरगाह पर पहुँचने विनाशकारी बेहद लम्बी दीर्घ लम्बाई वेव -लेंथ समुद्री तरंग ,यहां Tsu-सु का अर्थ बंदरगाह आउट Nami का अर्थ तरंग है ):यह ऐसी लम्बी समुद्री तरंग  है जो समुद्री तल में जल के नीचे Sub-duction Earth Quake से पैदा होती है जब एक प्लेट दूसरी पर चढ़के सरकती है तब पैदा होती है यह तरंग जो जल के नीचे तो शान्त भाव आगे बढ़ती है लेकिन तट की और पहुँचते -पहुँचते इसकी लम्बाई बेहद बढ़ जाती है और इसके ध्वंसात्मक प्रभाव भुगतने पड़ते हैं। 

इस सभी प्राकृत आपदाओं की फ़िज़िक्स की  चर्चा हम आगामी विज्ञानों के झरोखे के तहत "क्या और कैसे ?"में आगामी आलेखों में करेंगें। 

https://www.youtube.com/watch?v=W0LskBe_QfA

सन्दर्भ के लिए  
ये सेतु  भी देखें : (१ )(https://www.google.com/search?q=how+names+are+given+to+hurricanes&rlz=1CAACAP_enUS646US647&oq=how+names+are+given+to+hurricanes)

(२ )https://oceanservice.noaa.gov/facts/storm-names.html